Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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अर्थात् सुर-नर-हृदयहार यमुना मानो वारविलासिनीका हृदयहार है। मानों उसकी फेनालि उस नारीका उपरितन वस्त्र हो । क्रीड़ारत चक्रवाक मानों उसके स्तन हों । शैवालजाल प्रबुद्ध मनको रंजन करनेवाली रोमालि, भ्रमरावलि वलय वेणी, प्रफुल्ल पद्मदल दीर्घ नयन, पवनावलम्बित सलिल आवर्त, तनुतापनाशक नाभि, बन्यगजमद युक्त सलिलचन्दनलेप, ईषत व्यक्त होते हुए शुक्तिपुट सुन्दर रद एवं विकसित कमल, सुन्दर मुख हों। रत्नाकरप्रियके प्रति अनुरक्त सरिता श्री. और वारविलासिनी रत्नालंकृत अपने प्रियके प्रति । उसके विपुल एवं निर्मल पुलिन मानों उसके मितम्ब थे। इस प्रकारकी सरिता कविने देखी और पार की । नदी पार कर वह हरियाणा प्रदेशके डिल्ली नामक नगरमें पहुंचा ।
कवि दिल्ली पहुंचने के साथ-साथ उसका रम्य वर्णन उपस्थित करता है। अलंकृत दिल्ली कविको अलंकृत शैली पाकर और भी आकर्षणयुक्त बन गई है । गगनचुम्बी शालाएँ, विशाल रणशिविर (मंडप), सुरम्य मंदिर, समद गज, गतिशील तुरंग, नारीपद-नूपुरध्वनि सुन नृत्यत मयूर एवं प्रशस्त हट्टमार्ग आदिका निर्देश कविने किया है...
जहिं गयणामंडललग्गु साल, रण-मंडवपरिमंडित विसाल । गोउरसिरिकलसायपगंगु, जलपूरियपरिहालिंगियंगु । जहिं जण-मण-णयणाणंदिराई, मणियरगणमंडियमंदिराई । जहिं चदिसु सोहि घणवणाई, णायर-धार-खयर-सुहावणाई । जहिं समय-करडि घड धड हति,पडिसद्दे दिसि-विदिसि विस्फुडंति । जहि पवण-गयण धाविर तुरंग, परं वारि रासि भंगुर तरंग ।
दप्पुम्भउ भन तोणु व कणिल्लु, सविणय सोसु व बहु गोर सिल्लु । पारावार व वियरिय संखु, तिहुअणव-गुणणियरु व असंखु । इस प्रकार कविने शिलष्ट शैली में दिल्ली नगरकी वस्तुओंका चित्रण किया है। यह नगर नयनके समान तारक युक्त था, सरोवरके समान हारयुक्त और हार नामक जीवोंसे युक्त था, कामिनीजनके समान प्रचुर मान वाला, युद्धभूमिके समान नागसहित और न्याययुक्त, नभके समान चन्द्रसहित एवं राजसहित था।
युद्धवर्णनमें कविने भावानुकूल शब्दों और छन्दोंकी योजना की है। इस प्रकार 'पासणाहचरिउ' काव्य गुणोंसे परिपूर्ण है।
भाचार्यतुल्य कान्यकार एवं लेखक : १४१