Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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विवुध श्रीधरने कथाके मर्मस्पर्शी स्थलोंको पर्याप्त रसमय बनानेका प्रयास किया है। कमलश्री रात-दिन रोती है । उसकी आँखसे अश्रुधारा प्रवाहित होती है। भूखी, प्यासी और क्षीण शरीर होनेपर भी अपने मैले शरीरपर ध्यान नहीं देती । कविने लिखा है---
ता भणई किसोयरि कमलसिरि ण करमि कमल मुहुल्लउ । पर सुमति हे सुउ होइ मह फुट्ट ण मण हियउल्लउ । (३,१६) रोवइ धुवइ गयण चुव अंसुव जलधारहिं वत्तओ । भुक्खई खोण देह तम्हाइय मुणई मलिण गत्तओ । (४,५) कविने प्रकृति-चित्रण भी बहुत ही मनोरम शैलीमें उपस्थित किया है। भविष्यदत्त भयानक वनमें मदजलसे भरे हुए हाथियोंको देखता है। इस वनमें कहीं पर शाखामृग निर्भय होकर डालियोंसे निपके हुए थे; कहीं पर छोटी और कहींपर आकाशको छूने वाली बड़ी वृक्ष-शाखाओंपर लोटते हुए हरे फलोंको तोड़ते हुए वानर दिखलाई दे रहे थे। कहीं पर पुष्ट शरीर वाले सूअर, कहीं पर विकराल कालके समाः वन्य-पशु दिखाई पड़ रहे थे ! उसीके पासमें झरना प्रवाहित हो रहा, था जो पहाडको गुफाओंको अपने कल-कल शब्दसे भर रहा था।
तें बाहुडंडेण कमलसिरिपुत्तेण दिवाई तिरियाई बहुदुखभरियाई रायवरहो जतासु मयजलविलित्तासु कित्थुवि मयाहीसु अणुलग्गु गिरभीसु कित्थुवि महोयाह गयणयलविगया सहासु लोडंतु हरिफलई तोडतु केथुवि वराहाहं वलवंतरेहाह महवग्धु आलग्गु रोसेण परिभग्गु केत्युवि विरालाई दिट्टई करालाई केत्युवि सियालाई जुज्झति थूलाई
तहे पासे णिज्झरइ सरंतई गिरिकन्दर-विवराई भरंतई। इस ग्रन्थके संवाद भी बड़े रोचक हैं । प्रबन्ध-रचनामें कविने स्वाभाविकताके साथ काव्य-रूढ़ियोंका पालन किया है। यह अन्थ कडवक-पद्धसिमें पद्धडिया-छन्दमें लिखा गया है।
श्रीधर तृतीय अवन्तोके मुनि सूकुमालका जोवनवृत्त अंकित कर 'सुकुमालचारिउ'की
आचार्यतुष्य काव्यकार एवं लेखक : १४९