Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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देवसेन
देवसेन अपभ्रंश भाषा के प्रसिद्ध कवि हैं । इन्होंने वाल्मीकि, व्यास, श्रीहर्ष, कालिदास, वाण, मयूर, हलिय, गोविन्द, चतुर्मुख, स्वयंभू, पुष्पदन्त, भूपाल नामक कवियोंका उल्लेख किया है । कवि देवसेन मुनि हैं। ये देवसेन गणी या गणधर कहलाते थे। ये त्रिशिप और पिन गणधर के शिष्य थे । विमलसेन शील, रत्नत्रय, उत्तमक्षमादि दशधर्म, संयम यादिसे युक्त थे। ये महान तपस्वी, पंचाचारके धारक, पंच समिति और तीन गुप्तियोंसे युक्त मुनिगणोंके द्वारा वन्दनीय और लोकप्रसिद्ध थे । दुर्द्धर पंचमहाव्रतोंको धारण करनेके कारण मलधारीदेवके नामसे प्रसिद्ध थे । यही विमलसेन 'सुलोयणाचरिउ' के रचयिता देवसेनके गुरु थे |
देवसेनका व्यक्तित्व आत्माराधक, तपस्वी और जितेन्द्रिय साधकका व्यक्तित्व है। उन्होंने पूर्वाचार्योंसे आये हुए सुलोचनाके चरितको 'मम्मल' राजाकी नगरी में निवास करते हुए लिखा है ।
स्थितिकाल
कविने यह कृति राक्षस-संवत्सर में श्रावण शुक्ला चतुर्दशी बुधवार के दिन पूर्ण की है। साठ संवत्सरोंमें राक्षस संवत्सर उनचासवाँ है । ज्योतिषको गणनाके अनुसार इस तिथि और इस दिन दो बार राक्षस-संवत्सर आता है। प्रथम बार २९ जुलाई सन् १०७५ ई० (वि० सं० ११३२ श्रावण शुक्ला चतुर्दशी) और दूसरी बार १६ जुलाई सन् १३१५ ई० (वि० सं० १३७२ श्रावण शुक्ला चतुर्दशी) में राक्षससंवत्सर आता है । इन दोनों समयों में २४० वर्षोंका अन्तर है। शेष संवतोंमें श्रावण शुक्ला चतुर्दशी बुधवारका दिन नहीं पड़ता । कविने अपने पूर्ववर्ती जिन कवियों का उल्लेख किया है उनमें सबसे उत्तरकालीन कवि पुष्पदन्त हैं। अतः देवसेन भी पुष्पदन्तके बाद और वि० सं० १३७२ के पूर्व उत्पन्न हुए माने जा सकते हैं ।
'कुवलयमाला' के कर्त्ता 'उद्योतनसूरि'ने सुलोचनाकथाका निर्देश किया है । जिनसेन, धवल और पुष्पदन्त कवियोंने भी सुलोचनाकथा लिखी है । कवि देवसेनने अपना यह सुलोचनाचरित कुन्दकुन्दके सुलोचनाचरितके आधार पर लिखा है । कुन्दकुन्दने गाथाबद्ध शैलीमें यह चरित लिखा था और देवसेनने इसे पढडियाछन्द में अनूदित किया है। लिखा है
जं गाहाबचें आसि उत्तु सिरिकुन्दकुदगणिणा णिरुत्तु । तं एत्यहि पद्धडियह करेमि, परि किपि न गूढउ अत्थु देमि । तेष वि कवि गउ संसा लति, जे अत्यु देखि वसहि विचति ।
आचार्यस्य काव्यकार एवं लेखक १५१