Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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वंशावली पासणाहचरिउकी वंशावली के समान है । कविने अपनेको बील्हाके गर्भसे उत्पन्न लिखा है । बताया है
वील्हा - गन्भ समुभव दोहें । सव्वयहि सहुँ पर्याडय हें ॥ एउ चिरज्जिय पाव स्वयंकरु । वड्ढमाणचरिउ सुरु ॥ वड्ढमाणचरिउका रचनाकाल कविने वि० सं० १९९० ज्येष्ठ कृष्णा पंचमी रविवार बताया है। लिखा है
एया रहसएहि परिविगर्याह । संवच्छर सरणवह समेर्याह । पंचमिदिणे | सूरुवारे गयणं गणिठिइइ ॥
जे-पढम-पक्ख
अतएव श्रीधर प्रथम या विबुध श्रोवरका समय विक्रमकी १२वीं शती
निश्चित है ।
रचनाएँ
विवुध श्रीधरकी दो रचनाएं निश्चित से मानी जा है-खणाहचरिउ' और 'वड्ढमाणचरित्र'। ये दोनों ही रचनाएँ पौराणिक महाकाव्य हैं। इनमें पौराणिक काव्यके सभी तत्त्व पाये जाते हैं ।
पासणाहचरिउ
तीर्थंकर पार्श्वनाथका चरित अपभ्रंशके कवियोंको विशेष प्रिय रहा है। अहिंसा और ब्रह्मचर्य के सन्देशको जनसामान्य तक पहुँचानेके लिए यह चरित बहुत ही उपादेय है । कवि श्रीधर प्रथमने अपने इस चरितकाव्य में २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथका जीवनवृत्त गुम्फित किया है । कथावस्तु १२ सन्धियों में विभक्त है और इस ग्रंथका प्रमाण २५०० पद्य है । कविने यमुनानदीका चित्रण प्रियतमके पास जाती हुई विलासिनीके रूपमें किया है ।
उणासरि सुरणय-हिय हार, पणं बार विलासिणिए उरहार । डिंडीर पिंड उप्परिय पिल्ल, कीलिर रहूंग घोव्वड यणिष्ण | सेवाल - जाल-रोमावलिल्ल, बुह्यण-मण-परिरंजणच्छद्दल्ल | भमरावलिवेणीवलय लच्छि पवणाहयस लिलावत्त- नाहि, वणगयगलमय जलघसिणलित्त
दियसंत-सरोरुह पवर-बत,
पप्फुल्ल-पो मदल दीह अच्छि । विणियजणवयत्तणुताववाहि । दरफुडियसिप्पिउडदसणदत्त ।
रयणायर-पवरपियाणुरत ।
विउला मलपुलिणियंद जाम, उत्तिष्णी पयणहि दिट्टु ताम । हरियाणए देसे असंख गामे, गमियिणजणिय अगवरयकामे |
१४० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा