Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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स्थितिकाल
कवि पुष्पदन्त अपनी कृतियोंमें समयका निर्देश नहीं किया है; पर उन्होंने जिन ग्रंथों और ग्रंथकारोंका उल्लेख किया है उनसे कवि समयका निर्णय किया जा सकता है । कवि पुष्पदन्तने घवल और जयधचल ग्रंथोंका उल्लेख किया है । जयत्राटीका वीरसेनके शिष्य जिनसेनने अमोघवर्ष प्रथम सन् ८३७के लगभग पूर्ण की है। अतएव यह निश्चित है कि पुष्पदन्त उक्त सन्के पश्चात् ही हुए होंगे, पहले नहीं ।
हरिषेण कविकी 'धम्मपरिक्खा' में पुष्पदन्तका निर्देश आता है। धम्मपरिक्खाके रचयिता हरिषेण धक्कड़ वंशीय गोवर्द्धनके पुत्र और सिद्धसेन के शिष्य थे । वे मेवाड़देशके चित्तौड़के रहनेवाले थे और उसे छोड़कर कार्यवश अचलपुर गये थे।' वहीं पर उन्होंने वि० सं० १०४४में अपना यह ग्रंथ समाप्त किया | अतएव इस आधारपर वि० सं० १०४४के पूर्व ही पुष्पदन्तका समय होना चाहिए | जयघवलाटीकाका निर्देश करनेके कारण ई सन् ८३७के पूर्व भी पुष्पदन्त नहीं हो सकते हैं । अतएव पुष्पदन्तका समय वि० सं० ८९४- १०४४के मध्य होना चाहिए।
कविने अपने ग्रंथों में डिगु शुभतुरंग, वल्लभनरेन्द्र और कण्हायका उल्लेख किया है । और इन सब नामोंपर ग्रन्थको प्रतियों और टिप्पणग्रंथोंमें कृष्णराजः टिप्पणी लिखी है । इसका अर्थ यह हुआ कि ये सभी नाम एक ही राजाके हैं । बल्लभराय या वल्लभनरेन्द्र, राष्ट्रकूट राजाओं की सामान्यपदवी यी । अतएव यह स्पष्ट है कि कृष्ण राष्ट्रकूटवंश के राजा थे।
'णायकुमारचरिड' की प्रस्तावना में मान्यखेट नगरीके वर्णन प्रसंग में कवि कहता है कि वह राजा कण्हराय - कृष्णराजकी कृपाण जलवाहिनीसे दुर्गम है। राष्ट्रकूट वंश कृष्णनामके तीन राजा हुए। उनमें पहला शुभतुंग उपाधिधारी कृष्णराजा नहीं हो सकता क्योंकि उसके बाद ही अमोघवर्षने मान्यखेट को बसाया था । दूसरा कृष्णराज भी नहीं हो सकता है क्योंकि उसके समयमें गुणभद्रने उत्तरपुराणको रचना की थी। और यह पुष्पदन्तके पूर्ववर्ती कवि हैं । अतः कृष्ण तृतीय हो इनका समकालीन हो सकता है । कविके द्वारा वर्णित घटनाओंके साथ इसका ठीक-ठीक मेल बैठता है । इतिहाससे यह भली
१. सिरिचित्तचवि अचलउरेहो, गडणियकज्जे जिणहरणरहो | तह छंदालंकारपसाहिद, धम्मपरिवत्र एहते साहिय ॥ २. विक्कमणिकपरियत कालए, वनगए वरिस सहसचउतालए ।
१०६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा