Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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और इसको रचनाओंका अध्ययन किया होगा । यतः जंबुसामिचरिउपर पुष्यदन्तकी रचनाओंका गम्भीर और व्यापक प्रभाव दिखलायी पड़ता है। अतः कविके समयकी पूर्व सीमा वि० सं० १०२५ के लगभग आती है।
इतना ही नहीं जंबुसामिचरिउपर नयन्दिके सुदंसणचरिउ (वि० सं० ११००) का प्रभाव भी दष्टिगोचर होता है। एक बात और विचारणीय यह है कि जंबुसामिचरिउकी पंचम, षष्ठ और सप्तम सन्धियोंमें हंसद्वीपके राजा रत्नशेखर द्वारा केरलके घेर लिये जाने और मगधराज श्रेणिकको सहायतासे राजा रत्नशेखरको परास्त किये जानेके बहानेसे वीर कविने जिस ऐतिहासिक युद्ध घटनाकी ओर संकेत किया है उसमें कविने स्वयं भी एक पक्षकी ओरसे भाग लिया हो तो कोई आश्चर्यकी बात नहीं | यह घटना परिवर्तितरूपमें मुंजके द्वारा केरल, चोल तथा दक्षिणके अन्य प्रदेशोंपर वि० सं० १०३०-१०५० के बीच आक्रमण करके उन्हें विजित करनेकी मालूम पड़ती है। ___ योर कविके पश्चात् ब्रह्मजिनदासका संस्कृत 'जम्बुस्वामिचरित मिलता है जिसे उन्होंने वि० सं० १५२० में पूर्ण किया। यह रचना अपभ्रश काव्यका संस्कृत रूपान्तर है। महाकवि 'रइधू'ने भी 'अंबुसामिचरिउका निर्देश किया है । हरिषेणको 'धम्मपरिक्खा' वि० सं० १.४४ में लिखी गई है । अतः हरिषेण
और पुष्पदन्त इन दोनोंके साथ कविका सम्बन्ध रहा प्रतीत होता है। जैन ग्रन्थावलीमें 'जंबुचरिउ'का उल्लेख आया है । इस ग्रन्थको रचना भी अपभ्रंशमें वि० सं० १०७६ में हुई है । जंबुचरिसके रचयिता सागरदत्त हैं, जो 'जंबुसामिचरित'के समान ही विषयवस्तुका वर्णन करते हैं। अतएव प्रशस्तिमें निर्दिष्ट जंबुसाभिचरिउका रचनाकाल यथार्थ है। रचना
महाकवि वीरकी एक ही रचना जंबुसामिचरिउ उपलब्ध है। यह अपभ्रंशका महाकाव्य है और यह रचना ११ सन्धियोंमें पूर्ण हुई है ।
मंगलाचरणके अनन्सर कवि सज्जन-दुर्जन स्मरण करता है। पूर्ववर्ती कवियों के स्मरणके अनन्तर कवि अपनी अल्पमता प्रदर्शित करता है। मगधदेश और राजगृहका सुन्दर काव्यशैलीमें वर्णन किया गया है । तीर्थकर महावीरका विपुलाचलपर समवशरण पहुंचता है | और श्रेणिक प्रश्न करते हैं और गौतम गणघर उन प्रश्नोंका उत्तर देते हैं ।
मगध-मण्डलमें वर्धमान नामक ग्राममें सोमशर्मनामक गुणवान ब्राह्मण रहता था और जिसकी पत्नी सोमशर्मा नामक थी । उनके भवदत्त और भयदेव नामक दो पुत्र थे। जब वे क्रमशः १८ और १२ वर्षके थे तब उनके पिताका
आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : १२७