Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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समाप्त हुई थी। इसलिये ७३४ से ८४० के बीच स्वयंभुका समय माना जा सकता है।' डा. देवेन्द्र जैनने इनका समय ई० सन् ७८३ अनुमानित किया है । यह अनुमान ठीक सिद्ध होता है। रचनाएँ
कविकी अभी तक कुल तीन रचनाएं उपलब्ध हैं और तीन रचनाएँ उनके नाम पर और मानी जाती हैं
१. पउमचरित २. रिट्र्णेमिचरिउ ३. स्वयंभुछन्द ४. सोद्धयचरिउ ५. पंचमिचरित
६. स्वयंभुव्याकरण १. परामचरिउ
'पउमाचार एक श्रेष्ठ महाकाव्य है। रानकवलो मीका रूप देकर कविने उक्त ग्रन्थको विशेषता प्रदर्शित की है
बद्धमाण-मुहकुहर-विणिग्गय रामकहा-णइ एह कमागय अक्खर-वास-जलोह-मणोहर सु-अलंकार छन्द-मच्छोहर दोह-समास-पवाहावं किय सक्कय-पायय पुलिणालंकिय
देसीभाषा-उभय-तडुज्जल कवि-दुक्कर-धण-सह-सिलायल' 'पउमचरिउ' का ग्रन्थप्रगाण बारह हजार श्लोक है। और इसमें सब मिलाकर ९० सन्धियां है।
विद्याधरकाण्ड २० सन्धियाँ, अयोध्याकाण्ड २२ सन्धिया, सुन्दरकाण्ड, १४ सन्धियाँ, युद्धकाण्ड २१ सन्धियाँ, उत्तरकाण्ड १३ सन्धियाँ । ___ इन नब्बे सन्धियोंमें ८३ सन्धियोंकी रचना स्वयम्भुदेवने को है । विद्याधरकाण्डमें कुलकरोंके उल्लेखके अनन्तर राक्षस और वानरवंशका विकास बतलाया गया है। अयोध्या में सगरचक्रवर्ती उत्पन्न हुआ। उसके साठ हजार पुत्र थे। एक बार वे केलासपर्वतपर ऋषभदेवको वन्दनाके लिये गये। वहाँ पर जिनमन्दिरोंकी सुरक्षाके लिये उन्होंने उसके चारों ओर खाई खोदना आरम्भ १. जैन साहित्य और इतिहास, प्रथम संस्करण, पृ० ३८७ । २. परमचरिउ, प्रथम सन्धि, कड़वक २।१-४। ९८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा