Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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सदुत्तरस्यां दिशि पौदनाख्यापुरी विभाति त्रिदशाधिपस्य । पुरप्रभास्वत्प्रतिबिम्बितादर्शमेव जेनक्षितिमण्डलेऽस्मिन् ||१६||
कवि गोम्मटेशकी भूतिको कामधेनु, चिन्तामणि, कल्पवृक्ष आदि उपमानोंसे तुलना करता हुआ उसका वैशिष्ट्य निरूपित करता है -
अकृत्रिमात्प्रतिमापि कायोत्सर्गेण भातीव सुकामधेनुः । चिन्तामणि: कल्पकुंजः पुमानाकृति विधत्ते जिनविम्बमेतत् ॥ २१॥
कविकी भाषा प्रौढ है। एक-एक शब्द चुन-चुनकर रखा गया है। गोम्मटेशके मस्तकाभिषेकका वर्णन करता हुआ कवि कहता है
अष्टाधिक्यसहस्र कुम्भनिभूतैः सन्मन्त्रपूतात्मकैः कर्पूरोत्तमकुंकुमादिविलसद्गंधच्छटामिश्रितैः गंगाद्युद्धजलै रशेषकलिलोत्सन्तापविच्छेदके: श्रीमद्दोव लिमस्तकाभिषवणं चक्रे नृपाग्रेसरः ॥४४॥
अभिषेक में प्रयुक्त जलको विशेषता और पवित्रताका मूर्तिमान चित्रण करता हुआ कवि कहता है---
पीयूष वत्साधुकरैरनिद्येश्चोच्चोडूनैः
सारत रैजलौघैः । श्री गुम्मटाधीश्वरमस्तकाये स्नानं चकार क्षितिपाग्रगण्यः ॥४५॥ कविने भावव्यञ्जनाको स्पष्ट करनेके लिए रूपक अलंकारको अनेक पद्योंमें सुन्दर योजना की है। हेमसेन मुनिको कुन्दकुन्दवंशरूपी समुद्रकी समृद्धि के लिए चन्द्रमा, देशीयगणरूपी आकाशके लिए सूर्य, वक्रगच्छके लिए हर्म्यशेखर एवं नन्दिसंघरूपी कमलवन के लिये राजहंस कहा है
कुन्दकुन्द वंशवार्धिपूर्णचन्द्र चारुदे --
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शीगणसूर्यवगच्छम्यंशेखर ।
भूतले
त्वं जयात्र हेमसेनपण्डितार्य सम्मुने ||१२||
नन्दिसंघपद्मषण्ड राजहंस
राजभल्ल
राजमल्लके जीवन-परिचय के सम्बन्धमें लाटीसंहिता के अन्तमें प्रशस्ति उपलब्ध है। इस प्रशस्तिसे यद्यपि सम्पूर्ण तथ्य सामने नहीं आते — केवल उससे निम्नलिखित परिचय ही प्राप्त होता है
एतेषामस्ति मध्ये गुहनुपरुचिमान् फामनः संघनाथ - स्तेनोच्चैः कारितेयं सदनसमुचिता संहिता नाम लाटो |
७६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा