Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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प्रतीत होती है। यह प्राकृत भावसंग्रहका संस्कृत अनुवाद प्रतीत होता है । यद्यपि वामदेवने स्थान-स्थानपर परिवर्तन, परिवर्द्धन और संशोधन भी किये हैं। पर यह स्वतंत्र ग्रंथ नहीं है। यह देवसेन द्वारा रचित्त भावसंग्रहका रूपान्तर मात्र है । वामदेवने 'उक्त च' कहकर ग्रन्थान्तरोंके उद्धरण भी प्रस्तुत किये है। गीताके उद्धरण कई स्थलोपर प्राप्त होते हैं। वैदिकपुराणासे भी उद्धरण ग्रहण किये गये हैं । मित्यैकान्त, क्षणिकैकान्त, नास्तिकवाद, वेनेयकमिथ्यात्व, अज्ञान, केबलि-भुक्ति, स्त्री-मोक्ष, सग्रंथ-मोक्षकी समीक्षाके पश्चात् १४ गुणस्थानोंका स्वरूप और ११ प्रतिमाओंके लक्षण प्रतिपादित किये गये हैं । इज्या, दत्ति, गुरूपास्ति, स्वाध्याय, संयम, तप आदिका कथन आया है ।
भावसंग्रहके अतिरिक्त बामदेवके द्वारा रचित निम्नलिखित ग्रन्थ और भी मिलते हैं१. प्रतिष्ठासूक्तिसंग्रह
२. तत्त्वार्थसार ३. लोक्यदीपक
४. श्रुतज्ञानोद्यापन ५. त्रिलोकसारपूजा
६. मन्दिरसंस्कारपूजा ५० मेधावी और उनकी रचना मेधावीके गुरुका नाम जिनचन्द्र सूरि था । इन्होंने 'धर्म संग्रह-श्रावकाचार' नामक ग्रंथको रचना हिसार नामक नगरमें प्रारंभ की थी और उसको समाप्ति नागपुर में हुई। उस समय नागपुर पर फिरोजशाहका शासन था। मेधावीने "धर्मसंग्रहश्रावकचार के अन्तमें प्रशस्ति अंकित की है, जिसमें बताया है कि कुन्दकुन्दके आम्नायमें पवित्र गणोंके धारक स्याद्वाविद्याके पारगामी पद्मनन्दि आचार्य हुए। इन पद्मनन्दिके पट्टपर द्रव्य और गुणोंके ज्ञाता शुभचन्द्र मुनिराज हुए। इन शुभचन्द्र मुनिराजके पट्टपर ध्रुतमुनि हुए। इन श्रुतमुनिसे मेघावीने अष्टसहस्री मंथका अध्ययन किया। जिनचन्द्र के शिष्योंमें रत्नकोत्तिका भी नाम आया है। मेधावो श्रावकाचारके अद्वितीय पंडित थे । इन्होंने समन्तभद्ग, वसुनन्दि और आशाधर इन तीनों आचार्योंके श्रावकाचारोंका अध्ययन कर धर्मसंग्रह श्रावकाचारकी रचना की है। मेधावीने ग्रंथरचनाकालका निर्देश कर अपने समयको सूचना स्वयं दे दी है। बताया हैसपादलक्षे विषयेऽतिसुन्दरे
श्रिया पुरं नागपुरं समस्ति तत् । पेरोजखानो नृपतिः प्रपाति स
न्यायेन शौर्येण रिपूनिहन्ति च ।। १८ ।।
आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : ६७