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तत्सर्वं गलत:
सोऽपि (सं. प्रति भी)
देकानेकोऽपि
स्वरूपत्वाद (सं. प्रति भी) स्वभावत्वाद ( शेष सभी)
स वक्तव्यः
नवक्तव्य: (भा. प्रति
ज्ञा प्रति, व. प्रति)
नैव (व. प्रति )
स मूर्ति (ज्ञा. प्रति)
कारणं (व. प्रति )
नापि
समूर्ति
कर्मणां
चारित्रमुपाया
सौस्थित्य
स्मृतम् (सं. प्रति भी)
यथावद्वस्तु
निर्नीतिः
व्यवसायात्मा
(सं. प्रति भी )
पर्याधि
माध्यस्थं
भावनादा
अथवा मतम्
यदेतन् (सं. प्रति भी )
तद्बाह्यं
कालादिस्तपश्च
दौस्थ्ये
आत्मनो
भावयेत्तत्त्वं
ततः सर्वगतः *
चार्य (शेष सभी)
देकोऽनैकोऽपि (आ. प्रति)
XVI
चारित्रमुपाय
सास्तिक्य ( आ. प्रति)
मतम्
यथावद्धस्तु (ज्ञा. प्रति )
निर्णीतिः
(भा. प्रति ज्ञा. प्रति, व प्रति )
व्यवसायात्म
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संस्थित्य
( शेष सभी प्रतियों में )
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चारित्रे (व प्रति )
माध्यस्थ्य (भा. प्रति, ज्ञा. प्रति
व. प्रति)
भावनादाद (भा. प्रति )
अथवाऽपरम्
(आ. प्रति झा प्रति) (भा
तदेतन् (शेष सभी में)
मदबाह्य (भा. प्रति )
कालादि तपश्च*
दौस्थ्ये (भा. प्रति
ज्ञा. प्रति, व प्रति )
आत्मानं
भावयेन्नित्यं
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देकोऽनेकोऽपि (शेष सभी )
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अथवा परम् प्रति व प्रति)
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