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'प्रकाश्य प्रति के मूलपाठ महासेन पण्डित देव कृत कन्नड़ टीका वाली प्रति के ही हैं, संस्कृत टीका वाली प्रति में जो स्वरूप-सम्बोधन-पंचविंशति: मूल के पाठभेद हैं. वे पादटिप्पण के रूप में दिये गये हैं। अत: प्रकाश्य कन्नड़ टीका वाले मूलपाठों व इनके समान पाठों के कन्नड़ प्रति संज्ञा दी गयी
है। 2. संस्कृत टीका में तथा इसके आधार पर तैयार प्रतिलिपियों में पाठ समान होने से इन पाठों को संस्कृत प्रति संज्ञा दी गयी है।
उपर्युक्त कन्नड़ प्रति' एवं संस्कृत प्रति' की समस्त पाण्डुलिपियाँ श्रीमती रमारानी जैन शोध संस्थान, जैनमठ, मूडबिद्री (दक्षिण कर्नाटक
जिला) में संग्रहीत है। 3. कोल्हापुर स्थित लक्ष्मीसेन मठ में जो ‘स्वरूप-सम्बोधन-पंचविंशति:' की
प्रति है, उसके पाठभेदों को 'कोल्हापुर प्रति के नाम से उल्लिखित किया गया है। श्री देवकुमार जैन प्राच्य ग्रन्थागार, जैन सिद्धान्त भवन, आरा (बिहार) के ग्रन्यागार में जो 'स्वरूप-सम्बोधन-पंचविंशति:' की पाण्डुलिपि है, उसके पाठों को हम 'आरा प्रति संज्ञा देंगे।
पाठ-भेदों की सूची पद्य क्र. पंक्ति सं. प्रति में पाठ प्रकाश्य पाठभेद ।
पाठभेद ?
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संविदादिभिः सोपयोगो य: सोऽस्त्यात्मा ग्राह्योऽग्राह्यनाद्यन्तः न नाभिन्नो
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संविवादिना सोपमोगोऽयं* सोऽस्त्यामा, (ज्ञा. प्रति) ग्राह्यो ग्राह्यनाद्यन्त: (सं. प्रति) न चाभिन्नो(भा.प्रति, ज्ञा.प्रति, व.प्रति) कंथ च न (आ.प्रति) देहमात्रोऽपि (व प्रति) संमत: (आ.प्रति) नैव स: (भा प्रति,
ज्ञा प्रति.व.प्रति)
कथंचन जानमात्रोऽपि सम्मत:
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