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'पंचास्तिकाय- संग्रह में मोक्षमार्गरूप रत्नत्रय का वर्णन करते हुए आचार्य कुन्दकुन्द ने "छह द्रव्य-सात तस्व-पंचास्तिकाय एवं नवपदार्थों के श्रद्धान को 'सम्पग्दर्शन'; उनके ही ज्ञान को 'सम्यग्ज्ञान' तथा विषय-विरक्त जीवों को समताभाव को 'सम्यकुचारित्र' कहा है।13 तो 'द्रव्यसंग्रह में उक्त भेदात्मक रत्नत्रय को व्यवहार मोक्षमार्ग तथा इन तीनों से समन्वित आत्मा को निश्चय मोक्षमार्ग बताया है। आचार्य अमृतचन्द्र ने निश्चय-व्यवहार की द्विविधा मिटाते हुए साधक को स्पष्ट निर्देश कर दिया कि "दर्शन-ज्ञान-चारित्रमय एक आत्मतत्त्व ही मोक्षमार्ग में सेवन करने योग्य है।" चूंकि रत्नत्रय (भेदात्मक व्यवहार मोक्षमार्ग) आत्मा को छोड़कर अन्य किसी द्रव्य में नहीं रहता है, अत: रत्नत्रयात्मक आत्मा ही मोक्ष का कारण (मोक्षमार्ग) है। अन्यत्र भी निश्चय रत्नत्रय का ऐसा ही स्वरूप बताकर उसके अनुचरण की प्रेरणा दी गयी है।
द्रव्यसंग्रह के टीकाकार ब्रह्मदेव सूरि ने तो निश्चय मोक्षमार्ग के बासठ पर्यायवाची नामों को भी गिनाया है। प्रवचनसार की तत्त्वप्रदीपिका टीका में कहा है कि "समस्त ही पदार्थ भेदात्मक है, अत: उभयग्राही प्रमाण से वे दोनों अर्थात् रत्नत्रय (व्यवहार मोक्षमार्ग) तथा एकाग्रता (निश्चय मोक्षमार्ग) मोक्षमार्ग हैं।
1. व्यवहार-निश्चयो यः प्रबुध्य तत्वेन भवति मध्यस्थ:।।
प्राप्नोति देशनाया: स एव फलमविकलं शिष्यः ।। - पुरुषार्थीसक्युपाय । 2. समयसार, गाथा 46 की 'आत्मख्याति' टीका। 3. पंचास्तिकाम, गाथा 107 एवं टीकायें। तथा समयसार, याचा 155।
वृहद् द्रव्यसंग्रह, गाथा 391 5. समयसार कलश, 239 तथा वृहद् द्रव्यसंग्रह, गाथा 401 6. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 216; पद्मळ पंच०, 4/14 | 7. द्रव्यसंग्रह, गाथा 56 की टीका। 8. प्रवचनसार, गाघा 242 की तत्त्वप्रदीपिका' टीका।