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उत्थानिका (कन्नई टीका)-मोक्षार्थियप्पातं मोक्षदोळादोडं कांक्षेयं माडदिर्के-एंटु पेळल्वेडि बन्दुदुत्तरश्लोक
उत्थानिका (संस्कृत टीका)- तेन मोक्षविषयेऽपि तीब्राभिलाषां मा कुर्यादिति ब्रुवन्नाह
मोक्षेऽपि यस्य नाकांक्षा स मोक्षमधिगच्छति । इत्युक्तत्वाद्वितान्चेषी कांक्षां न क्वापि योजयेत् । । 21।। कन्नड़ टीका-(न योजयेत्) माडिदर्के (क:) आवं (हितान्वेषी) सुखमं बयसुवातं (कां) एनन्नु माडदिर्के? (कांक्षाम् ) कांक्षेयं (क्व) एल्लि? (क्वापि) आवेडेयोळादोर्ड (कुत:) आवुद्ध कारणमागि? (उक्तत्त्वात्) पूर्वाचार्यर पेळकेयुंटप्पुदरिद (कथम्) एन्तु? (इति) इन्तु (इति कथम्) इन्तेम्बुदेन्तु? 'मोक्षेऽपि यस्य नाकांक्षा, स मोक्षमधिगच्छति'-एन्दिन्तु । (अधिगच्छति) पेच्दुवं (कं) आवुदं? (मोक्षम्) मोक्षम (क:) आबं? (स:) आनं (यस्य किम्) आवदानुमोगेनु? (न कांक्षा) कांक्षे इल्ल (क्व) एल्लि? (मोक्षेऽपि) 'संसारकारणाभावेषु, स स्वात्मलामो मोक्ष:'-एंबुदरि हेळल्पट्टवप्प मोक्षदोळादोडं ।
संस्कृत टीका-यस्य मोक्षेऽपि (आकांक्षा) तीव्रतृष्णा (न) न च (स) स एव मोक्षम् (अधिगच्छति) प्राप्नोति (इत्युक्तत्वात् ) इति प्रतिपादितत्वात् (हितान्वेषी) मोक्षार्थी (क्वापि) कुत्रापि वस्तुनि (कांक्षाम् ) अभिलाषां (न योजयेत्) न कुर्यात् । सकषायपरिणाम: यावत, तावत्संसारस्तदभाव एव मोक्ष-इत्यभिप्रायः।
उत्थानिका (कन्नड़)-मोक्षार्थी जीव मोक्ष की प्राप्ति में भी कांक्षा न करें-इस बात को स्पष्ट करने के लिए यह श्लोक प्रस्तुत है।
उत्थानिका (संस्कृत)--इसलिए मोक्ष के विषय में भी तीव्र अभिलाषा मत करो-ऐसा बताते हैं।
खण्डान्वय-यस्य जिस व्यक्ति की, मोझोऽपि मोक्षाविषयक भी, आकांक्षा=इच्छा, न नहीं है, स=उही, मोक्षम्-मोक्ष को, अधिगच्छति-समझता या प्राप्त करता है-इति ऐसा, उक्तत्वात् कहा गया होने से. हितान्वेषी हित की खोज में लगे हुए व्यक्ति को. क्वापि किसी भी विषय में, कांक्षा-आकांक्षा, न योजयेत् नहीं करनी चाहिए।
हिन्दी अनुवाद (कन्नड़ टीका)-नहीं करें, कौन?-सुख को चाहनेवाला व्यक्ति, क्या-क्या नहीं करे? कांक्षा या अभिलाषा को, कहाँ?-किसी भी स्थान में,
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