Book Title: Swaroopsambhodhan Panchvinshati
Author(s): Bhattalankardev, Sudip Jain
Publisher: Sudip Jain

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Page 126
________________ किस कारण से ? पूर्वाचार्यों के द्वारा कथित अभिप्राय के अनुसार, कैसा ( अभिप्राय ) ? इस प्रकार का ऐसा कैसा ? - मोक्ष में भी जिसकी अभिलाषा नहीं है, वह मोक्ष प्राप्त करता है - इस प्रकार ( का अभिप्राय) प्राप्त करेगा, किसे ? मोक्ष को, कौन ( प्राप्त करेगा ) ? वह जिस किसी व्यक्ति को आकांक्षा नहीं है, कहाँ (अर्थात्, किस विषय में आकांक्षा नहीं है ) ? - 'संसार के कारणों का अभाव - ऐसी वह अपनी आत्मा की प्राप्ति ही मोक्ष है' इस प्रकार की व्याख्या से स्पष्ट होने वाली मुक्ति में भी। हिन्दी अनुवाद (संस्कृत टीका) - जिसकी मोक्ष के विषय में भी तीव्र तृष्णा नहीं है, वही मोक्ष को प्राप्त करता है - ऐसा प्रतिपादित होने से मोक्षार्थी व्यक्ति को किसी भी वस्तु में अभिलाषा नहीं करनी चाहिए। जब तक सकषाथ परिणाम है, तब तक संसार है, और इस संसार का अभाव ही मोक्ष है ऐसा अभिप्राय है। विशेषार्थ - जैसे सासारिक पदार्थों एवं भोगों की इच्छा / तृष्णा आत्महित में बाधक है, वैसे ही आत्मा एवं मोक्षसम्बन्धी राग भी स्थिर आत्मानुभूति एवं मोक्षप्राप्ति में बाधकतत्त्व है । यह मोक्षाभिलाषारूप सूक्ष्म राग दसवें गुणस्थान के अन्त तक रहता है। नाटकसमयसार में कविवर पं. बनारसीदास लिखते हैं “कहाँ दसम गुणथान दुसाखा, जहें सूक्षम सिव की अभिलाषा । सूक्षम लोभ दसा जहँ लहिए: सूक्षम साम्पराय सो कहिए । । "2 किन्तु यही राग दसवें और बारहवें गुणस्थान की विभाजक रेखा है। यह राग है, तो दसवाँ गुणस्थान और इस राग के छूटते ही बारहवाँ गुणस्थान पूर्ण वीतरागता का प्रगट हो जाता है। अत: कितना भी प्रशस्त कहा जाये; किंतु मोक्ष की अभिलाषा का राग भी मोक्ष की प्राप्ति में बाधक ही है, साधक नहीं। 'जब तक कषामभाव है, तब तक धर्मध्यान है और कषाय छूटने के बाद ही शुक्लध्यान होता है; 3 जो मोक्ष का साक्षात्कारण कहा गया है। जो आठवें, नौवें एवं दसवें गुणस्थान में शुक्लध्यान कहा गया है, उसमें भी अव्यक्तराग की स्थिति मानी गयी है, 4 अत: उसे भी शुक्लध्यान की उत्कृष्ट अवस्था नहीं माना गया है । इसीलिए दसवें गुणस्थान में राग के कारण सूक्ष्मपरिग्रहसंज्ञा' भी कही गयी है । आचार्य पद्यप्रभमलधारिदेव भावशुद्धि होते हुए भी परमाणुमात्र भी (निज शुद्धात्मा से ) अन्य किसी की भी स्वीकृतिमात्र को 'लोभ' संज्ञा देते हैं ।' अतएव यहाँ पर यह कहना कि “किसी भी पदार्थ में किसी तरह की आकांक्षा नहीं करनी 64

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