Book Title: Swaroopsambhodhan Panchvinshati
Author(s): Bhattalankardev, Sudip Jain
Publisher: Sudip Jain

View full book text
Previous | Next

Page 119
________________ उत्थानिका (कन्नड़ टीका)-एन्तप्प स्वरूपनिष्ठापरनप्पुदेंदोडे पेळल्वेडि बंदुदुत्तरश्लोकं उत्थानिका (संस्कृत टीका)-हेयोपादे, ति ज्ञात्वा हेयं विसृज्योपादेयं स्वीकुर्यादिति बदन्नाह हेयोपादेयतत्त्वस्य स्थिति विज्ञाय हेयतः । निरालम्बोऽन्यतः स्वस्मिन्नुपेये सावलम्बनः ।। 19 ।। कन्नड़ टीका-(निरालम्ब:) प्रमेय-परिच्छेद-रहितनागु; (कथम्) एन्तु? (अन्यतः) तन्निं बेरप्प वस्तुगळनाधयिसि (कथंभूतात्) एन्तप्पह बेरम्प वस्तुवनाश्रयिसि? (हियत:) परिहरिसल्पडुव (किं कृत्वा) एनं माडि? (विज्ञाय) निश्चयिसि (कम्) आवुदं? (स्थितिम्) दूरवं (कस्य) आवुदर? हियोपादेयतत्त्वस्य) हेयोपादेयस्वरूपद (साबलम्बन:) ग्राह्य-ग्राहक-स्वरूपमनुळ्ळवनागु (क्व) एल्लि? (स्वस्मिन्) सहज निजस्वरूपदल्लि, (कथंभूते) एन्तप्प निजस्वरूपदल्लि? (उपेये) स्वीक्रियमाणमप्पुदरल्लि । संस्कृत टीका-हियोपादेयतत्त्वस्य) संभवपरावर्तनरूपसंसारश्च, तत्कारणभूतमिष्यात्वादिपरिणामाश्चानंतसुखस्वरूपमोक्षश्च तत्कारणभूत रत्नत्रयाणि च एतेषां स्वरूपस्य (स्थितिम्) अवस्थान्तरं (विज्ञाय) ज्ञात्वा (अन्यत:) स्वस्माद् भिन्नतः हियतः) त्याज्यत:, संसार-तन्निबंधनशरीरादि बाह्यवस्तुषु (निरालम्ब:) निराश्रय: सन् (उपेये) उपेयस्वरूपे (स्वस्मिन्) स्वस्वरूपे (सावलम्बन:) साहितालम्बनो भव । परचिन्तां त्यक्त्वा निजात्मचिन्तामेव कुर्यादित्यभिप्रायः । उत्थानिका (कन्नड़)-किस प्रकार की स्वरूपनिष्ठा होनी चाहिए? इस प्रश्न के उत्तरस्वरूप आया है प्रस्तुत पलोक । उत्थानिका (संस्कृत) हेय और उपादेय तत्त्वों को जानकर, हेय तत्त्व को छोड़कर, उपादेय को स्वीकार करना चाहिए-ऐसा कहते हुए बताते हैं। खण्डान्वय-हेयोपादेयतत्त्वस्य हेय और उपादेय तत्त्व की, स्थिति स्थिति को-स्वरूप को, विज्ञाय जानकर, अन्यत: हेयत: अपने से भिन्न हेयतत्त्वों से. निरालम्ब: आलम्बन रहित होकर (उनका आश्रय छोड़कर), उपेये उपादेयभूत अथवा ग्रहण करने योग्य, स्वस्मिन् अपने स्वरूप में, सावलम्बन – आलम्बन सहित हो जाओ, (उसका आश्रय ग्रहण करो)। हिन्दी अनुवाद (कन्नड़ टीका)-ज्ञेयभूत अन्य वस्तुओं के ज्ञान से भी 51

Loading...

Page Navigation
1 ... 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153