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भा. प्रति
ज्ञा. प्रति
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डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल द्वार सम्पादित प्रति, जो कि जयगु र से प्रकाशित 'वृहज्जिनवाणी संग्रह में दी गयी है। ब्र. ज्ञानानन्द न्यायतीर्थ द्वारा संकलित एवं सम्पादित 'शान्ति सोपान' नामक संकलन पुस्तिका में प्रकाशित प्रति।। क्षु. मनोहरलाल वर्ण 'सहजानन्द द्वारा 'स्वरूप-सम्बोधन-प्रवचन' नामक पुस्तक में उपलब्ध पाठ।
व. प्रति
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पद्य-क्रमांक - प्रस्तुत ग्रन्थ की समस्त प्रकाशित प्रतियों एवं आरा प्रति' में पद्यों की संख्या 25 है। जबकि अन्य समस्त ताड़पत्रीय प्रतियों में पद्यों की संख्या 26है। तड़पत्रीय प्रतियों एवं प्रस्तुत संस्करण में प्रकाश्य प्रति का पद्य क्रमांक 20 (बीसवां) -
"तथाप्यतितृष्णावान् हन्त ! मा भूस्त्वात्मनि ।
यावत्तष्णा-प्रभूतिस्ते तावन्मोझ न यास्यसि ।।' उपलब्ध नहीं होने से पद्य क्रमांक 19वें तक ते सभी प्रतियों में पद्य-क्रमांक समान रहे हैं, किन्तु आगे के पद्य क्रमांकों में एक-एक संख्या का अन्तर आ गर है। जैसे कि प्रकाशित प्रतियों एवं 'आरा प्रति' में पद्य क्रमांक 20 से 25वें तक जो-जो पद्य हैं, वे प्रकाश्य ग्रन्थ में पद्य क्रमांक 21वें से 26वें हैं। तथा उपर्युक्त पद्य (तथाप्यति. ..) प्रकाश्प ग्रंथ में पद्य क्रमांक 20 पर है, जो कि समस्त हस्तलिखित प्रतियों (आरा प्रति को छोड़कर) में इसी क्रम पर आया है। ___ इन सब बातों के अतिरिक्त इस ग्रन्थ में जिस पद्धति से सम्पादन एवं अनुवाद आदि कार्य किये जा रहे हैं, उनका परिचय भी अपेक्षित है। ___ क्रमश: सर्वप्रथम कन्नड़ टीकाकार के द्वारा प्रस्तुत उत्थानिक ली गयी है, जिसे 'उत्थानिका (कन्नर टीका)' शीर्षक दिया गया है। तदुपरान्त संस्कृत टीकाकार के द्वारा प्रदत्त उत्थानिका दी गयी है. जिसे 'उत्थानिका (संस्कृत टीका) संज्ञा दी गयी है। इन दोनों उत्थानिकाओं के उपरान्त मूलग्रन्थ का पद्य दिया गया है. इसका कोई शीर्षक नहीं है एवं पद्य क्रमांक प्रत्येक पद्य के साथ दिय" गया है। मूल पद्य के बाद सर्वप्रथम 'कन्नड़ टीका' शीर्षक के अन्तर्गत महासेन पण्डितदेव की कन्नड़ टीका दी गयी है, फिर केशववर्य्य (केशवण्य?) कृत संस्कृत टीका को संस्कृत टीका' शीर्षक से दिया गया है। चूंकि यहाँ तक की सामग्री मूल पाण्डुलिपियों की है, अत: अनुबाद आदि कार्यों का सीमांकन करने हेतु इसके बाद एक आड़ी मोटी लाइन (लेड) डाली गयी है। उसके नीचे सर्वप्रथम कन्नड़ टीका
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