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उत्थानिका (कन्नड़ टीका)-इन्तनेकधर्मात्मकनात्मनेंदु पेळे, आ धर्मगळना आत्मनेन्तु कैकोळ्वनेंदु सौगतादिगळु पूर्वपक्षमं माडे पेळलेंदु बन्दुदुत्तरश्लोकं
उत्थानिका (संस्कृत टीका)-एवं संक्षेपेणात्मस्वरूपं प्ररूप्य संबोधनास्वरूपेण तपस्वीकारं स्वयमेव-भवानेव करोत्वितीदं प्ररूपयति__ इत्याद्यनेकधर्मत्वं, बन्धमोक्षौ तयोः फलम् ।
आत्मा स्वीकुरुते तत्तत्कारणै: स्वयमेव तु ।।१।। कन्नड़ टीका-(स्वीकुरुते ) कैकोळ्वं (क:) आवं? (आत्मा) आत्म (किम् ) एनं (इत्याधनेकधर्मत्वम् ) इन्निवु मोदलागोडेय अनेकधर्मरूपमं (न केवलमित्यायनेकधर्मत्वम्) केवल धर्मगळने एंबुदिल्ल (बन्धमोक्षौ) बन्धमुमं मोक्षमुम (फलम् ) फलमुमं (कयो:} आवुवर? (तयो:) आ बन्धमोक्षंमळ (कैः) आवुवरिंद कैगोळ्वं? (तत्तत्कारणैः) अवरवर कारणंगळिंद। इंतल्लदे ईश्वरादिगळे माहवरेबुदज्ञानचेष्टितं, (कथम्) एंतु (स्वयमेव तु) तनगे ताने। ___ संस्कृत टीका-(आत्मा) जीव: (इत्यादि) इत्युपयोगादिपूर्वोक्तम् (अनेकधर्मत्वम्) बहुप्रकाराणां (तयो:) बंधमोक्षयोः (फलम् ) फलञ्च (तत्तत्कारणैः) तत्तदुपयोगादीनां कारणै: (तु) पुन: (स्वयमेव) आत्मैव (स्वीकुरुते) स्वीकरोति । आत्मानन्तधर्मात्मकृत्वादित्युक्तोपयोगादिगुणा: उपलक्षणमिति भावः ।
उत्थानिका (कन्नड़)-इस प्रकार आत्मा अनेक धर्मात्मक है-ऐसा कहने पर उन धर्मों को बह आत्मा कैसे स्वीकार करता है?' ऐसे सौगत (बौद्ध) आदिकों (के अभिप्राय) को पूर्वपक्ष बनाकर उत्तर देने के लिए यह श्लोक आया
उत्थानिका (संस्कृत)- इस प्रकार संक्षेपरूप से आत्मा का स्वरूप बताकर संबोधनरूप से (ऐसा कहते हैं कि) तप को अंगीकार स्वयं ही-आप ही करें-ऐसा यहाँ प्ररूपित करते हैं।
खण्डान्वय-इत्यादि पूर्वोक्त (प्रकार से आत्मा की) अनेकधर्मत्वं अनेकधर्मात्मकता को (तथा) बन्धमोक्षौबन्ध और मोक्ष को, (एवम्) तयोः उन दोनों के, फलम् फल को, तत्तत्कारणै:-उन-उन कारणों से, आत्मा यह जीव, स्वयमेव-स्वयं ही, स्वीकुरुते स्वीकार करता है।
हिन्दी अनुवाद (कन्नड़ टीका)-स्वीकार करता है, कौन? यह आत्मा, किसे (स्वीकार करता है)? इत्यादि (पूर्वोक्त) अनेक घमात्मकस्वरूप को। केवल
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