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उत्थानिका ( कन्नड़ टीका ) - सम्यग्दर्शनानन्तरं सम्यग्ज्ञानमं पेळल्वेडि बन्दुदुत्तर
श्लोक
उत्थानिका (संस्कृत टीका ) - सम्यग्ज्ञानस्वरूपं प्रतिपादयन्नाहयथावद्वस्तुनिनतिः सम्यग्ज्ञानं प्रदीपवत् ।
तत्स्वार्थव्यवसायात्मा कथञ्चित्प्रमितेः पृथक् ।। 12 ।।
कन्नड़ टीका - (सम्यग्ज्ञानम् ) सम्यग्ज्ञानमक्कु (का) आवुदु ? ( वस्तुनिनीर्तिः) वस्तुबिन निर्णयं (कथम्) एन्तु ? (यथावत्) एन्तिर्दृदन्ते कथंभूतम्) एन्तप्पुदु ? ( स्वार्थव्यवसायात्मा ) स्वपरप्रकाशकस्वभावं (किम् ) आवुदु ? (तत्) आ सम्यग्ज्ञानं (कथञ्चित्) एन्तरन्ते? (प्रदीपवत्) प्रदीपदन्ते (पुनरिप कीदृक् ) मत्तमेंतप्पूदु ? ( पृथक् ) बेरप्पुडु (कस्याः ) आवुदरत्तणिदं ? ( प्रमिते :) फलस्वरूपमण्य घटपटादिज्ञानदत्तविंदं (कथम् ) एन्तु ? (कथञ्चित् ) संज्ञा-संख्यादिप्रकारविंदं ।
संस्कृत टीका - ( यथावत्) वस्तुस्वरूपमनतिक्रम्य (वस्तुनिनीति) वस्तुविज्ञानं (सम्यग्ज्ञानम् ) सम्यग्ज्ञानं स्यात् । (तत्) तत्सम्यग्ज्ञानं (प्रदीपवत्) प्रदीपो यथा स्वार्थव्यवसायात्मक:- स्वपरपदार्थप्रकाशक:, तद्वत् प्रदीपवत् । तत:ज्ञानं ( स्वार्थव्यवसायात्मा) स्वपरार्धप्रकाशकं (प्रमितेः) ज्ञानविशेषात् (कथञ्चित् पृथक् ) कम्यञ्चिद् भिन्नं स्यात् । एवंविधज्ञानं स्वस्य फलरूपप्रमितेः सकाशात् सर्वथा भिन्नं स्यादिति भावः !
उत्थानिका (कन्नड़) - सम्यग्दर्शन के बाद सम्यग्ज्ञान को बताने के लिए आया है आगे का श्लोक
उत्थानिका (संस्कृत) - सम्यग्ज्ञान का स्वरूप बताते हुए कहते हैंखण्डान्वय-यथावद् वस्तुनिर्नीति: ज्यों का त्यों वस्तु का निर्णयात्मक ज्ञान, सम्यग्ज्ञानं=सम्यग्ज्ञान ( कहलाता) है । तत् वह सम्यग्ज्ञान, प्रदीपवत् = दीपक के समान, स्वार्थव्यवसायात्मा अपने एवं ज्ञेयभूतपदार्थ के निश्चयात्मक ज्ञानरूप (होता है ) (और) प्रमिते : = प्रमिति से, कथञ्चित् पृथक् = कथंचित् भिन्न (होता है ) ।
हिन्दी अनुवाद (कन्नड़ टीका ) - सम्यग्ज्ञान होता है ( कहलाता) है, कौन ? वस्तु का यथार्थ निर्णय, कैसे? जैसा वह (पदार्थ) है, ठीक उसी प्रकार से और कैसा है? अपने को और परवस्तु को प्रकाशित करने के स्वभाववाला है, कौन ? वही सम्यग्ज्ञान, किस तरह से ? दीपक की तरह। और किस तरह का है? अलग
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