Book Title: Swaroopsambhodhan Panchvinshati
Author(s): Bhattalankardev, Sudip Jain
Publisher: Sudip Jain

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Page 41
________________ "ज्ञानाद्भिन्लो न चाभिन्नो भिन्नाभिन्न: कथञ्चन । शानं पूर्वीपरीभूतं, सोऽयमात्मेति कीर्तितः ।। 4 ।। (2) सप्तभड्गीतरंगिणी' में पृष्ठ 79 पर 'स्वरूपसम्बोधन- पञ्चविंशतिः' ग्रन्ध का निम्नलिखित पद्य उद्धृत किया गया है : "प्रमेयत्वादिभिर्धर्मरचिदात्मा चिदात्मकः। ज्ञानदर्शनतस्तस्माच्चेतनाचेतनात्मकः ।। ।। स्वरूपसम्बोधन-पञ्चविंशतिः की टीकायें एवं उनके टीकाकार:इस ग्रन्थ की दो टीकायें इस प्रति में प्रकाशित हो रही हैं। इनमें प्रथम टीका कन्नड़ टीका है, जिसके कर्ता महासेन पंडितदेव हैं। इनके बारे में जो परिचय उपलब्ध हुआ, वह संक्षेपत: निम्नानुसार प्रस्तुत है-- कन्नड़ टीका एवं उसके टीकाकार:- इस टीका का नाम टीकाकार ने 'कर्णाटकवृत्ति' दिया है। यह पदव्याख्य शैली की टीका है, जिसमें सरल कन्नड़ भाषा में प्रत्येक पद के अभिप्राय को स्पष्ट किया गया है। इस टीका में प्रत्येक पद्य की जो उत्थानिका दी गयी है, वह विशेषत: उल्लेखनीय है। इन उत्थानिकाओं में 'मतार्थ को प्रधानता प्रदान की गयी है। ग्रन्थकार ने पद्य में जिन शब्दों का प्रयोग किया है, उनके पीछे किस-किस मान्यता के निषेध का उद्देश्य है - यह बात उत्थानिकाओं में भली भाँति स्पष्ट हुई है। एक तरह से उत्थानिकायें 'पूर्वपक्ष' का संकेतमात्र करती हैं तथा पद्य एवं टीका में उत्तरपक्ष' के प्रभावी प्रस्तुति हुई है। किन्तु ऐसा पूरे ग्रन्थ में नहीं हुआ है. मात्र तेरहवें पद्य (दर्शन-ज्ञान-पर्यायष्त्तरोत्तरभाविषु...) तक ही उत्थानिकाओं में अन्य मतों क' उल्लेख पूर्वपक्ष के रूप में है; इसके बाद ते आत्मस्वरूप-प्रप्ति के साधनों की ही विशेष चर्चा है। दूसरे शब्दों में कहें तो ग्रन्थ दो भागों में विभक्त है, पूर्वार्द्ध भाग में आत्मा के स्वरूपविषयक चर्चा है, यह चर्चा बस्तुगत-बिवेचनरूप होने से इसमें आत्मा के स्वरूप के विषय में अन्य मताउलम्बियों की मान्यताओं से प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रतिपाद्य आत्म-स्वरूप के साथ मतभेदों का उल्लेख पूर्वपक्ष के रूप में टीकाकार ने संकेतित किया है। जबकि ग्रन्थ का उत्तरार्द्ध उस पूर्वार्द्ध-प्रतिपादित आत्मस्वरूप की प्राप्ति के उपायों की चर्चा करता है, उसमें अन्य मतावलम्बियों के मतभेदों की चर्चा नहीं है। अन्य मतों के खण्डन में सर्वाधिक गैग-सौगत (बौद्ध) को मान्यता का xviii

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