Book Title: Swaroopsambhodhan Panchvinshati
Author(s): Bhattalankardev, Sudip Jain
Publisher: Sudip Jain

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Page 78
________________ उत्यानिका. (कन्नड़ टीका)-इंतु ज्ञानदत्तणिदात्मं भिन्नाभिन्नस्वरूपनेंदु प्रतिपादिसि आत्मं सर्वथा अचेतनं, घेतनासमवायदि-चेतननेंदु पूर्वपक्षमं माडलु आतंगे परिहारवागिं पेळल्वेहि बंदुदुत्तरसूत्रउत्थानिका (संस्कृत टीका) - चेतनाचेतनात्मकायमात्मनः कथमिति चेदाहप्रमेयत्वादिभिर्धर्मरचिदात्मा चिदात्मकः । ज्ञान-दर्शनतस्तस्माच्चेतनाचेतनात्मकः ।। 4।। कन्नड़ टीका-(आत्मा) आत्म (अचिद्) अचेतनेंदु व्यवहारिसल्यड्डुवं, (कै:) आवुदरिद (धर्म:) धर्मगळिंद, (कथंभूतैः) एन्तप्पवरिंदं (प्रमेयत्वादिभिः) प्रमाणविषयत्वसत्त्यमोदलागोडेय चेतनद्रव्यंगोलिदसाधारणधर्मगळिंदै (चिदात्मकः) चित्स्वभावनप्पं, (कस्मात्) आवुदरत्तणि? (ज्ञानदर्शनत:) ज्ञानदर्शनाद्यसाधारणधर्मगळितंणिंद, (तस्मात्) अदु कारणदिदं (चेतनाचेतनात्मकः) चेतनाचेतन व्यवहारविषयनप्पं। संस्कृत टीका-(प्रमेयत्वादिभिः) प्रमेयत्वास्तित्व-नित्यत्व-वस्तुत्वद्रव्यत्याधनेक- साधारणधमरभेदात्मा (अधिदात्मा) अचेतनस्वरूपः, (जानदर्शनतः) असाधारणज्ञानदर्शनगुणै: (चिदात्मकः) चिच्चैतन्यमात्मस्वरूपं यस्यासौ चिदात्मकः । (तस्मत) तस्मात् कारणात् (चेतनाचेतनात्मकः) चेतनञ्चाचेतनञ्च चेतनाचेतने, ते वे आत्मस्वरूपं यस्यासौ चेतनाचेतनात्मकः । एवमितरवस्तुनि च स्वस्मिंश्च विद्यमानसाधारणासाधारणगुणापेक्षयाऽचेतनात्मकश्च चेतनात्मकश्च भवतीति आत्मनश्चेतनाचेतनात्मकाचं प्रतिपादितमित्यर्थः । - उत्थानिका (कन्नड़)-इस प्रकार आत्मा ज्ञान से भिन्नाभिन्न स्वरूप है-ऐसा प्रतिपादन करने के बाद (अब) 'आत्मा सर्वथा अचेतन है, चेतना के समवाय से चेतना होता है' - इस प्रकार के पूर्वपक्ष वालों (वैशेषिकों) का परिहार करने के लिए प्रतिपादनार्थ उत्तर सूत्र आया है। उत्थानिका (संस्कृत)-आत्मा के चेतनाचेतनात्मकत्व कैसे होता है?- ऐसी जिज्ञासा होने पर कहते है। खण्डान्वय-प्रमेयत्वादिभिः धर्म:-प्रमेयत्वादि (सामान्यगुणों) धर्मों के कारण से, आत्मा आत्मतत्त्व, अचित् अचेतन (कहा गया है) (और) ज्ञानदर्शनत: ज्ञानदर्शन आदि (विशेष गुणों) के कारण से, चिदात्मक: चेतनस्वरूप (कहा गया है), तस्मात् इसलिए, चेतनाचेतनात्मक:= (पूर्वोक्त दोनों अपेक्षाओं से युगगत्) आत्मा

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