________________
है, तो इसे उनका व्यक्तिगत अभिमत माना जा सकता है; जिससे असहमत होते हुए भी इस पर कोई टिप्पणी करने का अधिकार मैं अपने पास नहीं मानता हूँ ।
टीकाकार:- प्रस्तुत संस्कृत टीका के टीकाकार ने टीका की प्रशस्ति में अपना नाम 'केशववर्य लिखा है। एकाध अन्य प्रति में इसकी जगह 'केशवण्ण' पाठ भी पढ़ा गया है। किन्तु उपलब्ध जैनाचार्य - परम्परा के इतिहास में 'केशववर्य्य' या 'केशवण्ण' नाम से कोई भी उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। इससे मिलते-जुलते नामों वाले चार मनीषियों की सूचना मिलती है। जिनका संक्षिप्त परिचय निम्नानुसार है
1. इनका नाम केशवनन्दि है । ये बलगारगण के भट्टारक मेघनन्दि के शिष्य थे। समय शक संवत् 970 (1048 ई०) माना गया है
I
2. केशवराज नामक ये साहित्यकार 'सूक्तिसुधार्णव' के कर्ता मल्लिकार्जुन के पुत्र थे, प्रसिद्ध कन्नड़ कवि जन्न इनके मामा थे। इनकी रचनाओं में से मात्र 'शब्दमणिदर्पण' नामक कन्नड़व्याकरण का ग्रन्थ ही उपलब्ध है, जो कि आठ अध्यायों में विभक्त पद्यमयी रचना है। इनका समय सन् 10600 ई0 के लगभग माना गया है।
3. केशववर्णी:- यह सैद्धान्तिक अभयचन्द्रसूरि के शिष्य थे। इन्होंने भट्टारक धर्म भूषण के आदेश पर शक संवत् 1281 ( 1359 ई0 ) में 'गोम्मटसार' ग्रंथ की 'जीवतत्त्वप्रबोधिका' नामक संस्कृत - कन्नड़ - मिश्रित टीका लिखी थी। कर्नाटक कविचरित: से ज्ञात होता है कि इन्होंने 'अमितगति श्रावकाचार' पर भी टीका लिखी थी। देवच्चन्दकृत 'राजाबलिकथे' के अनुसार इन्होंने शास्त्रत्रय (समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय) पर भी टीकाओं की रचना की थी। कवि मंगराज ने इन्हें 'सारत्रयवेदि' विशेषण दिया है। इनका समय ईसा की 14वीं शताब्दी माना गया है ।
4. केशवसेन सूरि मा ब्रहमकृष्ण नामक ये चतुर्थ विद्वान् काष्ठासंघी भट्टारक रत्नभूषण के प्रशिष्य एवं जयकीर्ति के पट्टधरशिष्य थे। ये 'कवि कृष्णदास' के नाम से प्रसिद्ध थे। इनकी तीन रचनायें हैं- कर्णामृतपुराण, मुनिसुव्रतपुराण और षोडशकारणव्रतोद्यापन । इनका समय विक्रम की 17वीं शताब्दी माना गया
है ।
तुलनात्मक दृष्टि से विचार करें तो 'केशवनन्दि' का साहित्यकाररूप अज्ञात
xxvii