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रजितं चित्तः रजितं चेतः' 17 2. दुरादेयो
दुराधेयो (शेष सभी) (सं. प्रति भी) निरालम्बोऽन्यतः निरालम्बो भवान्यस्माद् स्वस्मिन् (सं. प्रति में) (शेष सभी में) माश्रित्य
मवलम्थ्य (व. प्रति) 20 । तदाप्पति
तथाप्यतीव (सं. प्रति) (शेष प्रतियों में यह
पद्म है ही नहीं) प्रभूतिस्ते
प्रसूतिस्ते (सं. प्रति) फले (सं. प्रति भी) सुखे (शेष सभी में) करिष्यसि
करिष्पति (भा. प्रति,
जा. प्रति, व. प्रति) 242 अनाकुलं
अनाकुलः (सं. प्रति) अनाकुल
(शेष सभी प्रतियों में) 24 2
संवेद्य (स. प्रति भी) संवेद्ये शेष सभी प्रतियों में) x 25 1
स्थिर (सं. प्रति भी) स्थितं (शेष सभी प्रतियों में) x विनश्वरे
विनश्वरम् (भा. प्रति,
ज्ञा. प्रति, व. प्रति) लभस्वेत्यं
लभेत्स्वोत्थं (भा. प्रति,
. प्रति, व. प्रति) 25 2 परम्
पदम (व. प्रति के अतिरिक्त
अन्य सभी प्रतियों में) 26
परमात्म (सं. प्रति भी) परमार्थ (शेष सभी प्रतियों में) x --- -- -----
---------------- नोट:- मूड़बिद्री की प्रकाश्य कन्नड़ टीकावाली प्रति एवं कोल्हापुर वाली प्रति के पाठ
समान हैं। *तारांकित चिहनवाले पाठ अन्य सभी प्रतियों में समान है। प्रतिरके कूट-संकेतों का विवरण इस प्रकार है:सं. प्रति - मूडबिदी के जन मठस्थित ग्रन्यागार की संस्कृत टीका (इस:
संस्करण में प्रकाशित) वाली प्रति । आ. प्रति - देवकुमार जैन ग्रन्थागार, आरा (बिहार) से प्राप्त प्रति । को. प्रति - कोल्हापुर के मठ में उपलब्ध ताड़पत्रीय प्रति।
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