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की उत्थानिका का हिन्दी-रूपान्तरण 'उत्थानिका (कन्नड़ टीका )' इसी शीर्षक से एवं संस्कृत टीका की उत्थानिका का हिन्दी - रूपान्तरण 'उत्थानिका (संस्कृत टीका ) ' इस शीर्षक से दिया गया है। दोनों उत्थानिकाओं के हिन्दी रूपान्तरण के बाद मूल ग्रन्थ के पद्य का प्रतिपद हिन्दी अर्थ 'खण्डान्वय' शीर्षक से दिया गया है। इसके बाद दोनों टीकाओं ( कन्नड़ टीका एवं संस्कृत टीका ) का हिन्दी अनुवाद क्रमश: 'हिन्दी अनुवाद (कन्नड़ टीका ) ' एवं 'हिन्दी अनुवाद (संस्कृत टीका)' शीर्षकों से दिया गया है। यहाँ तक अनुवादन / भाषान्तरण कार्य करने के बाद ' विशेषार्थ' नाम से एक अतिरिक्त शीर्षक प्रत्येक पद्य के साथ दिया गया है, जिसमें मतार्थ, नयार्थ, आगमार्थ, भावार्थ आदि जहाँ जैसी दृष्टि से कथन है, तदनुसार अपेक्षित स्पष्टीकरण आगम-प्रमाण-पूर्वक किया गया है।
इस प्रकार प्रत्येक पद्य के अनुवाद - विशेषार्थ आदि कार्यों के बाद ग्रन्थ पूर्ण होने पर अन्त में चार परिशिष्ट दिये गये हैं, जिनमें प्रथम परिशिष्ट में पद्य - अनुक्रमणिका, द्वितीय परिशिष्ट में 'शब्दानुक्रमणिका तथा तृतीय परिशिष्ट में 'विशेषार्थ' शीर्षकान्तर्गत अन्तर्गत उल्लिखित एवं प्रस्तावना में पादटिप्पणों में संकेतित सन्दर्भ-ग्रन्थों की सूची है। तथा चतुर्थ परिशिष्ट में 'अज्ञातकर्तृक संस्कृत टीका टिप्पणसहित दी गई है।
ग्रन्थ के पद्यों का विषय-विभाजन ग्रन्थ के पूर्व 'विषयानुक्रमणिका' में किया गया है तथा उसके भी पूर्व ग्रन्थ, ग्रन्थकार, टीकाकारों एवं टीकाओं के विषय में विवेचन 'प्रस्तावना में किये गये हैं।
इस ग्रन्थ की टीकायें पदव्याख्या शैली की है, अत: उनके हिन्दी अनुवाद में वाक्य-विन्यास-सौष्ठव एवं मूलानुगामी अनुवाद इन दोनों के सन्तुलन में बहुत समस्या रही। यद्यपि कोष्ठकों में संयोजक पदों का प्रयोग कर इस बारे में अपनी ओर से प्रयत्न किया गया है, तथापि वैसा वाक्य गठन नहीं बन पाया है, जो सीधी गद्यात्मक टीका में सहज सम्भव होता है ।
अपनी ओर से पूर्ण सावधानी रखते हुए भी अल्पज्ञ होने के कारण अनेकों त्रुटियाँ सम्भावित हैं, आशा है विज्ञ पाठकगण उन्हें सुधारकर मुझे भी उनसे अवगत कराने की अनुकम्पा करेंगे।
25 अक्टूबर 1995
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-डॉ० सुदीप जैन