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हैं, जिनमें अनुमान का लक्षण, भेद एवं उसके अंगों आदि के विषय में सविस्तार अतिमहत्त्वपूर्ण विवेचन प्राप्त होता है। ___ तृतीय प्रवचन प्रस्ताव' में 94 कारिकाओं द्वारा आयम, आप्त एवं सप्तभंगी आदि विषयों की विस्तृत विवेचना की गयी है।
इस पर अकलंकदेव ने विषय-विशेष की सूचनारूप 'वृत्ति' लिखी है, टीकारूप नहीं। कारिकाओं के साथ गद्य में उत्थानिका-वाक्य भी दिये गये हैं। कारिकायें और वृत्ति दोनों प्रौढ़ एवं गम्भीर भाषा-शैली में निबद्ध है।
इस ग्रन्थ पर आचार्य वादिराज (शक संवत् 947 सन् 1025 ई०) ने विस्तृत विवरणात्मक टीका लिखी है, जो कि 'न्यायविनिश्चय-विवरण' के नाम से दो भागों में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित भी है।
3. प्रमाण संग्रह:- प्रमाणों एवं युक्तियों के संग्रहस्वरूप यह ग्रन्थ भाषा एवं विषय दोनों की दृष्टि से लघीयस्त्रय' एवं न्याय विनिश्चय' से जटिल है। अत: विद्वानों ने इसे उक्त दोनों ग्रन्थों के बाद में निर्मित माना है। उनके अनुसार 'इस ग्रन्थ में अकलंकदेव ने अपने अवशिष्ट विचारों को प्रस्तुत किया है।' ___ इस ग्रन्थ में कुल 9 प्रस्ताव एवं 87% कारिकायें हैं। प्रथम प्रस्तान में 9 कारिकाओं द्वारा प्रत्यक्षप्रमाण-विषयक सामग्री वर्णित है। द्वितीय प्रस्ताव में भी 9 कारिकायें हैं, जो परोक्षप्रमाण-सम्बन्धी विशेष चर्चा प्रस्तुत करती है। तृतीय प्रस्ताव में अनुमान, अनुमानांगों एवं सामान्यविशेषात्मक वस्तु का 10 कारिकाओं में वर्णन है। चतुर्थ प्रस्ताव में विविधमतों की समीक्षापूर्वक हेतु' की सविशेष चर्चा प्रस्तुत 11 कारिकाओं में की गयी है। पञ्चम प्रस्ताव में 10% कारिकाओं में हेत्वाभास विषयक प्ररूपण किया गया है । षष्ठ प्रस्ताव में 12 कारिकाओं द्वारा वाद का लक्षण एवं विभिन्नवादों की समीक्षा की गयी है। सप्तम प्रस्ताव में 10 कारिकाओं में प्रवचन का लक्षण एवं आगम की अपौरुषेयता का खण्डन आदि विषय वर्णित है। अष्टम प्रस्ताव में 13 कारिकाओं द्वारा नैगम आदि सप्तनयों का वर्णन है तथा अन्तिम नवम प्रस्ताव में 2 कारिकाओं द्वारा प्रमाण-नय-निक्षेप का उपसंहार किया गया है।
इस ग्रंथ की 87% कारिकाओं पर अकलंकदेव ने पूरक वृत्ति भी लिखी है और इसप्रकार गद्य-पद्यमयीं यह ग्रंथ 'अष्टशती' के बराबर आकार का हो जाता है। इस ग्रन्थ पर आचार्य अनन्तवीर्य ने 'प्रमाणसंग्रहालंकार' नामक अपनी टीका का
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