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रखा है तब तक तुम्हें रस आ रहा है तब तक जैसे ही तुमने मन से पीठ की वंसे ही तुम सन्मुख हो जाओगे, सारे विचार विकल्प गायब जाएगा और मात्र एक जानने वाला रह जाएगा,
उनकी ओर तुमने मुंह कर ही उन्हें बल मिल रहा है, उस साक्षी के, आत्मा के हो जाएंगे, सब शून्य हो तभी अपना दर्शन होगा ।
मंत्र व श्वास साक्षी - णमोकार मंत्र का उच्चारण करो और अपने ही कानों से सुनो। जहां मन और कहीं गया, सुनना बंद हो जाएगा। बार-बार सुनने को चेष्टा करो। अगर कुछ देर तक सुनना चालू रहा तो बोलना मंद होने लगेगा, उपयोग में स्थिरता आने लगेगी, विचार जो भीतर में चलते थे रुक जाएंगे, मात्र मंत्र का बोलना और सुनना चालू रहेगा। चेतना की शक्ति सुनने में लगेगी तो बोलने में कम होने लगेगी, बोलना सूक्ष्म से सूक्ष्म होकर जीभ हिलनी भी बंद हो जाएगी परन्तु मंत्र का उच्चारण अंतर में चलेगा और सुनना भी अंतर में चालू रहेगा। इससे आगे बढ़ोगे तो मंत्र रुक जाएगा आर श्वास का आना-जाना जो अभी तक कभी अनुभव में नहीं आया था, मालूम होने लगगा परन्तु तुम श्वास लेने वाले मत बन जाना, श्वास का जानने वाले ही रहना । काफी दिन तक इसका अभ्यास चालू रखना होगा । निरन्तर अभ्यास करते रहोगे तो शांति मिलने लगेगी, परमात्मा के आनन्द का झोंका आने लगेगा, सागर तो अभी नहीं दिखा परन्तु ठण्डी हवा तो लगने लगेगी, रस आने लगेगा परन्तु रुकना मत, कुछ होने वाला है, पानी से भरे हुए बादल आ गए हैं, बस अब थोड़ी ही देरी है, बाहर से हट गए, इन्द्रिय के विषयों से हट गए, इन्द्रियों से हट गए, मन से हट गए अब श्वास पर आकर रुके हैं । जहाँ ज्ञाता पर जरा जोर पड़ा कि श्वास से हटे और तब मात्र एक अकेला वह चैतन्य अनुभव में आता है ।
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पूजा व स्तुति साक्षी - पूजा करो और सुनने को चेष्टा करो, स्तुति बोलते हुए उसे सुनने की चेष्टा करो। सुनने की चेष्टा करने पर मन का व्यापार रुकेगा । मन द्वारा जो शक्ति फालतू की बातें सोचने में जाती थी वही सुनने में लग जाएगी। बाहर में पूजा व स्तुति चल रही है और भीतर में उसका जाननपना चल रहा है, चलता जा रहा है, इन दोनों क्रियाओं के बीच में। क्योंकि मन के कोई विचार विकल्प नहीं रहते अतः शांति का अनुभव होता है । जानने वाले पर यदि जोर देते जाओगं तो पूजा व स्तुति का बोलना मंद होता होता एक समय बन्द हो जायेगा और तब मात्र एक अकेला चैतन्य तुम्हारे अनुभव में आ जायेगा, वहां शरीर नहीं, कर्म नहीं, कोई