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सुबह पूज्य आचार्य देव श्री के और दोपहर को पूज्य मुनिराज श्री: जिनचन्द्र विजयजी महाराज के प्रवचन और ऋषिमंडल स्तोत्र के पाठ से वातावरण उल्हास प्रधान और उमिल हो गया था ।
दोनो टाइम की क्रिया एवं १०० खमासणा की क्रिया पू. आचार्य देव एवं पूज्य जिनचन्द्र विजयजी महाराज कराते थे। किसी भी आराकवक को कोई भी तकलीफ नहो इसकी पूरी सावधानी पू. महाराज. श्री रखते थे।
२०० आराधकों में ३० पुरुष थे कुल ८५ प्रथम उपधान वाले थे।
भिन्न भिन्न पुण्यशालियों की तरफ से जिननन्दिर में बड़ी पूजा .. और भव्य अंग रचना (आंगी) की जाती थी।
ज्यों ज्यों दिन बीतते गये त्यों त्यों आतथकों का हर्ष बढ़ता गया । सभी को माला परिधान की तमन्ना जगी थी। उस समय उसके निमित्त शान्तिस्नात्र युक्त अष्टाव्हिा महोत्सव करने का उपधान समितिने निर्णय किया । उसके अनुसार मगसर सुः ३ से जिनमन्दिर में अष्टान्दि का महोत्सव का प्रारंभ हुआ। उसी दिन कुल्म स्थापन, दीप स्थापन और जवारा रोपण की क्रिया बड़े उत्साह से हुई।
मगसर मुदी ९ को नवग्रह पृजन, दश दिकपाल पूजन अष्ट मंगल पूजन अच्छी तरह से हुआ ।
मगसर मुदी १०, आजका दिन सबके लिये खूब आनन्द का था । क्यों कि आज माला का वरवोड़ा एवं मालाकी उछामणी का कार्य होने वाला था । सुबह ९ से १०॥ तक प्रभावशाली प्रवचन हुआ ।... दोपहर को तीन बजे वरघोड़ा चढ़ाया गया उसमें सव से आगे निशान, डंका, देशी वाद्य मंडली चलती थी। उस के बाद माला पहनने वाले भाई वहन अपनी माला को लेकर के भिन्न भिन्न वाहनों में बैठे हुये दृष्टिगोचर होते थे। उस में १० मोटर कार १० घोड़ागाड़ी एवं जोधपुर