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किया गया है तथा पि ओजगुप ( 3.14 ) का उदाहरप गय में प्रस्तुत किया गया है।
___ चतुर्थ परिच्छेद में, प्रथमतः अलंकारों की उपयोगिता पर प्रकाश डालने के अनंतर चित्रादि चार पब्दिालंकारों एवं जाति आदि पैंतीस अर्थालंकारों का सोदाहरप वर्पन किया गया है। तत्पश्चात गौडीया एवं वैदर्भी - इन दो रीतियों का विवेचन किया गया है।
पंचम व अंतिम परिच्छेद में, रस-स्वरूप, सभेद श्रृंगारादि नौ रस और उनके स्थायी भाव, अनुभाव तथा भेदों एवं नायक-नायिकाओं के भेद तथा तत्सम्बन्धी अन्य विषयों का निरूपप किया गया है।