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वाग्भटालंकार
उपलब्ध साक्ष्यों के अनुसार वाग्भट प्रथम का एकमात्र आलंकारिक गन्य "वाग्भटालंकार' ही प्राप्त है। रसिकलाल पारी का कथन है कि यह कृति जय सिंह के मालवा विजय (1136 ई.) तथा उसकी मृत्य (1143 ई.) के मध्यवर्ती काल में समाप्त हुई होगी क्योंकि इसमें उस विजय का उल्लेख तो है परन्तु कुमारपाल की प्रशंसा मे उसमें एक भी प्रलोक नहीं है।' वाग्भटालंकार की अनेक प्राचीन टीकाएं हैं जो जैन विद्वानों के अतिरिक्त जैनेतर विद्वानों द्वारा भी लिखी गई हैं। इनमें पाँच प्रसिद्ध है --
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जिनवर्धनतरिप्रपीत टीका। सिंहदेवगपिपपीत टीका। क्षेमहंसगपिप्रपीत टीका। अनन्तभट्टतुत गपेशप्रणीत टीका। राजहतोपाध्याय प्रपीत टीका।
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इतनी अधिक टीकाओं से इस गन्थ की महत्ता सिद्ध होती है।
1. महामात्य वस्तुपाल का साहित्यमण्डल, से उद्धत
पृ. 21