Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तेरहवां परिणाम पद - अजीव परिणाम प्रज्ञापना
१८.
__ यहाँ पर स्पृशद गति का आशय 'आकाश प्रदेशों पर रुक कर गति करना' समझना चाहिये। बिना रुके आकाश प्रदेशों का स्पर्श नहीं गिना गया है। अत: परमाणु एक समय में जो लोकान्त तक जाता है वह उन-उन आकाश प्रदेशों की श्रेणी को पार करते हुए भी बीच में नहीं रुकने से उसकी अस्पृशद गति गिनी गई है क्योंकि रुकने में कम से कम एक समय तो लगता है एक ही समय में लोकान्त तक जाने पर बीच में रुकना नहीं गिना जाता है क्योंकि समय काल का सूक्ष्मतम अंश है। उसके फिर दो विभाग नहीं हो सकते हैं अतः अविग्रह (ऋजु) गति से जाने वाले जीवों की एवं प्रथम समय के सिद्धों की अस्पृशद गति होती है।
संठाण परिणामे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते?
गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते। तंजहा - परिमंडल संठाण परिणामे जाव आयय संठाण परिणामे ३।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! संस्थान परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! संस्थान परिणाम पांच प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - १. परिमण्डल संस्थान परिणाम २. वृत्त संस्थान परिणाम ३. त्र्यस्र संस्थान परिणाम ४. चतुरस्र संस्थान परिणाम और ५. आयत संस्थान परिणाम।
विवेचन - पुद्गलों के अलग-अलग आकार विशेष में परिणत होने को संस्थान परिणाम कहते हैं। परिमंडल संस्थान, वृत्त (वट्ट-गोलाकार) संस्थान, त्र्यस्त्र (तंस-त्रिकोण) संस्थान, चतुरस्र (चउरंसचतुष्कोण) संस्थान, आयत (लंबा) संस्थान के भेद से संस्थान परिणाम पांच प्रकार का कहा गया है।
भेय परिणामे णं भंते! काविहे पण्णत्ते?
गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते। तंजहा - खंडाभेय परिणामे जाव उक्करियाभेय परिणामे ४।..
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! भेद परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! भेद परिणाम पांच प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - १. खण्डभेद परिणाम २. प्रतरभेद परिणाम ३. चूर्णिका (चूर्ण) भेदपरिणाम ४. अनुतटिकाभेद परिणाम और ५. उत्कटिका (उत्करिका) भेद परिणाम।
. विवेचन - खंड भेद परिणाम, प्रतर भेद परिणाम, चूर्णिका भेद परिणाम, अनुतरिका भेद परिणाम . और उत्करिका भेद परिणाम । ग्यारहवें भाषा पद में इनका स्वरूप बताया जा चुका है।
वण्ण परिणामे णं भंते! कइविहे पण्णते?
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