________________
२० :: परमसखा मृत्यु
बित्ता जितनी भी जगह खाली नहीं हुई है। और अनाज का तो पूरा पहाड़ भरा हुआ है।" राजा ने धीरज के साथ और छ: महीने तक कथा सुनी। फिर उसे चक्कर आने लगे । टिड्डियाँ
और दाने, टिड्डियां और दाने, उसकी आंखों के सामने नाचने लगे। स्वप्न में भी टिड्डियां और दाने दिखाई देने लगे। अंत में समझौते के अनुसार उसने अपना पूरा राज्य कथाकार को दे दिया और कथा सुनने की जिम्मेदारी से छुटकारा पाया। कथा तो बन्द हुई, किन्तु दिमाग में टिड्डी और दाने की गूंज काफी समय तक चलती रही । अनंतकाल तक जीने की नौबत अगर हम पर आ पड़े तो हम भी उस राजा की तरह अपना सर्वस्व देकर मौत मांग लेंगे।
दूसरी ओर अनंतकाल तक अगर रुक जाना पडे, एक बार मरने के बाद हमेशा के लिए हम मर जायें, फिर से कभी जीने का मौका ही न मिले, तो इस तरह के मोक्ष से भी हम कम अकुलाहट महसूस नहीं करेंगे। काले पानी की सजा भुगतने वाला कैदी भी पंद्रह-बीस सालों के बाद वापस लौट सकता है। मोक्ष पाये हुए मनुष्य को इतनी भी राहत न मिले तो वह कितनी बड़ी सजा होगी ! किस पाप के लिए मनुष्य इतनी बड़ी सजा स्वीकार करे ? इस तरह की दलील करके चंद लोग कहते हैं कि मोक्ष अगर कुछ समय के लिए ही हो तो ठीक है। हजार वर्ष के लिए हो, लाख वर्ष के लिए हो; किन्तु उसकी कुछ-न-कुछ मियाद अवश्य होनी चाहिए। उसके बाद हमारे इस प्यारे मृत्यु लोक में वापस लौट आने का कुछ प्रबंध होना चाहिए। शरीर छूटने के बाद मुक्त जीवन कितना ठोस होता है, कितना सर्वतंत्र स्वतंत्र होता है, आदि सुन्दर वर्णन भले ही वेदांती लोग करें; किन्तु इस स्थिति की तो हम केवल कल्पना ही कर सकते हैं।