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मरणोत्तर की सेवा :: १५१ अनावश्यक है। आदर दिखाने के लिए भी घी जलाना अनुचित होगा । तरह-तरह के तेल तो मिलते ही हैं । घासलेट भी है और लोबान जैसे सस्ते धूप भी मिलते हैं। ___ स्मशान जाने-माने का रास्ता स्वच्छ और साफ रहना चाहिए। स्मशान के अन्दर बैठने के लिए छाया की जगह हो। जो दुःखी लोग आपस में बातें करना नहीं चाहते, उनके लिए कुछ उचित साहित्य पढ़ने के लिए वहां रक्खा जाय । कुछ अच्छे चरित्र-ग्रन्थ भी रक्खे जायं । जो लोग नहाना चाहते हैं, उनके लिए भी कपड़े रखने का, बदलने का अलग कमरा बनाया जाय । फूल के पेड़ और छाया के पेड़ जगह-जगह हों। ___अगर लोग मान जायं तो अन्तिम क्रिया एक-सी हो । हरेक धर्म का अलग-अलग स्मशान बनाने का रिवाज आजतक चला, अब तो राष्ट्र की ओर से सामान्य नियम बनाये जायं और सब लोग उसी का पालन करें, यही अच्छा रिवाज होगा। हर जगह दोही स्मशान हों। एक जगह दफन करने का और दूसरी जगह अग्निदाह करने का।
जितने भी लोग मरें, उनके लिए स्थायी कब्र बनाकर रखने का रिवाज हर जगह आसान नहीं है। कुछ दिन के लिए मृतक के लिए कुछ जगह रोकना ठीक होगा। बाद में मिट्टी के साथ मिट्टी मिल गई और जगह का नामोनिशान न रहा, यही अच्छा तरीका होगा। हरेक व्यक्ति का जन्म-स्थान और मृत्युस्थान और कब्रिस्तान अगर हम सदा के लिए बनाकर रखने लगे तो स्थान का प्रश्न उठ खड़ा होगा। जिन्दे लोगों के लिए रहने की जगह नहीं रहेगी और कुछ काल के बाद उस स्थान की हिफाजत भी नहीं हो सकती । आदर दिखाने के लिए जो प्रबन्ध किया गया, वही अनादर का रूप धारण करेगा। इसलिए हरेक कब्रिस्तान कुछ समय के बाद बन्द ही किया जाय और दस-बीस वर्ष के बाद उस स्थान का खेती के लिए या बगीचे के लिए उपयोग