Book Title: Param Sakha Mrutyu
Author(s): Kaka Kalelkar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Prakashan

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Page 155
________________ १५४ :: परमसखा मृत्यु है। वहां के लोगों ने जलाये हुए शरीर की अस्थियां विसर्जन करने के लिए एक अलग ही तालाब पसंद किया है। उस तालाब के पानी का दूसरा कोई उपयोग नहीं होता । स्थानिक लोग कहते हैं कि उस तालाब के पानी की खूवी यह है कि उसमें छोड़ी हुई अस्थियां थोड़े ही दिनों में गल जाती हैं। ___ कुछ भी हो, यह रिवाज मुझे अच्छा लगा। अस्थियों के विसर्जन के लिए एक अलग ही तालाब मुकर्रर कर रखना और उसके पानी का दूसरा उपयोग न करना, अच्छा ही हैं। जब अधिकांश दुनिया शव को जमीन में गहरा गड्डा खोदकर डालती आई है, तब जलाये हुए मुर्दो की अस्थियां और चिताभस्म एक गड्डे में डालकर उस पर एक पेड़ लगाने का रिवाज क्यों न चलाया जाय? हड्डी का और भस्म का खाद पेड़ों के लिए अच्छा है और मृत व्यक्ति के प्रति आदर दिखाने के लिए पेड़ की हिफाजत करना सबसे अच्छा और अनुकूल है। नदी के किनारे प्रेत-दहन करने का रिवाज इसलिए पसन्द किया गया था कि हर साल नदी में बाढ़ पाकर सारी जगह आप-हो-आप साफ हो जाती है और मृत व्यक्तियों के नाम कब्रिस्तान के रूप में कोमती जमीन रोकने की भी बात नहीं उठती। हरेक मरे हुए व्यक्ति के पोछे कब्रिस्तान के रूप में जमीन रोकी जाय तो पृथ्वी का सारा क्षेत्र मरे हुए लोगों की ही मिल्कियत हो जायगी। न खेती के लिए, न मनुष्य-बस्ती के लिए काफी जगह रह सकेगी। लोकोत्तर पूज्य व्यक्तियों की समाधि की बात अलग है। सामान्य मनुष्य के नाम एक सूई जितनी जमीन भी रोको जाय, यह योग्य नहीं है । नदी का किनारा तो बढ़ती हुई आबादी के दिनों में सब तरह की खेती के लिए ही काम आना चाहिए। जमाना बदल गया है, परिस्थिति बदल गई है। सामाजिक

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