Book Title: Param Sakha Mrutyu
Author(s): Kaka Kalelkar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Prakashan

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Page 153
________________ १५२ :: परमसखा मृत्यु किया जाय और कब्रिस्तान किसी दूसरे स्थान पर हटाया जाय । ऐसा परिवर्तन सैकड़ों बरसों के बाद कुदरती तौर पर होता हो है, लेकिन मियाद बांधकर विचारपूर्वक सामाजिक सम्मति से नियम बनाना अच्छा है । जुलाई, १९५७ ३ :: नदी - किनारे स्मशान मनुष्य की देह जलाने के लिए हम लोग नदी का किनारा पसंद करते हैं। खुली जगह होती है । शव दहन के पश्चात राख ठण्डी करके उसे पानी में फेंक सकते हैं, ताकि पवित्र या अपवित्र हड्डियां मनुष्य के पांव के नीचे न आ जायं । नदी के जल में सब चीजें बह जाती हैं। आहिस्ता-आहिस्ता नदी की मिट्टी समुद्र तक पहुंच जाती है और समुद्र तो पवित्र से पवित्र स्थान है— 'सागरे सर्व तीर्थानि ।' किसी ने सवाल उठाया कि नदी का पानी तो हम पीने के लिए भी लेते हैं । जले हुए शरीर की हड्डियां और राख नदी के पानी में बहाना कहां तक अच्छा है ? जवाब में किसी ने कहा, "अजी, आपने बनारस जाकर नहीं देखा । वहाँ तो प्रधा जला हुआ मुर्दा भी पवित्र गंगाजी के पवित्र जल में फेंक दिया जाता है । ऐसा मुर्दा जब पानी में तैरने लगता है, तब प्रांखों से देखा नहीं जाता । पेट में कुछ का कुछ हो जाता है ।" अंग्रेजों ने देखा कि अगर भारतीयों के 'धार्मिक' रिवाजों में सरकार दखल नहीं देती है तो लोग ऐसी सरकार को खुशी से अपनी निष्ठा अर्पण करते हैं, फिर उनकी नीति सारे देश को लूटने की क्यों न हो । भारत के लोग अपना हित और स्वार्थ नहीं समझते हैं । केवल भावनाप्रधान होते हैं । उनकी 1

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