Book Title: Param Sakha Mrutyu
Author(s): Kaka Kalelkar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Prakashan

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Page 158
________________ मृतात्मा को शान्ति :: १५७ का क्या होता है, यह हमारी कल्पना का प्रधान विषय नहीं है। मनुष्य की मृत्यु के बाद उसके भले-बुरे कार्यों के द्वारा उसका व्यक्तित्व हमारी स्मृति में दीर्घकाल तक रहता है। उस स्मृति में रहे हुए व्यक्तित्व के प्रति हम अपनी श्रद्धा व्यक्त करें, यही 'प्रेत' के व्यक्तित्व का श्राद्ध है। जैसा कि पहले बताया गया, मृत्यु के बाद जीव को जो दशा प्राप्त होती है, उस दशा को या स्थिति को 'सांपराय' कहते हैं। 'सांपराय' को समझने की कोशिश प्राचीन काल से अनेकों ने की है। उस बात को हमारे लोक-व्यवहार में लाने की जरूरत नहीं। सामाजिक व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद अपनी सेवा के द्वारा लोगों की स्मृति में दीर्घकाल तक जीवित रहे, इस उद्देश्य से उसके मरणोत्तर जीवन का हम स्मृतिजल से, श्रद्धांजलि से, सिंचन करें, यही है हमारा कर्तव्य । अगर मृत व्यक्ति को ऐसी श्रद्धांजलि का ज्ञान होता हो तो उसे अवश्य हो तृप्ति मिलती होगी। इसलिए श्रद्धांजलि अर्पण करने की क्रिया को 'तर्पण' कहते हैं । 'श्राद्ध' और 'तर्पण' न आत्मा का होता है, न जीव का । वह होता है केवल मरणोत्तर हमारी स्मृति में चालू रहने वाले व्यक्तित्व का। इसीलिए मृत्यु के समाचार प्रकाशित करने पर हम जरूर लिख सकते हैं कि मृत व्यक्ति की सेवाएं हम दीर्घकाल तक न भूलें, हम उनसे नित्य नई प्रेरणा प्राप्त करें और आदरयुक्त स्मरण के द्वारा हम मृत व्यक्ति के प्रति अपना आदर और अपनी कृतज्ञता व्यक्त करें। हम यह भी कह सकते हैं कि मृत व्यक्ति के चले जाने से समाज में एक उत्तम सेवक की या प्रेरक की जो खाई पैदा हुई है, उसे पूर्ण करने के लिए पुरुषार्थ करते रहना ही हमारा प्रधान कर्तव्य है और यही मृत व्यक्ति का सच्चा तर्पण है।

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