Book Title: Param Sakha Mrutyu
Author(s): Kaka Kalelkar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 154
________________ नदी-किनारे स्मशान :: १५३ भावना संभालकर उन्हें लूटना आसान है। जो हो, भारत की अंग्रेज सरकार ने हमारे धार्मिक रिवाज में हस्तक्षेप न करने की जो नीति चलाई, वह परदेशी सरकार के लिए शुद्ध नीति ही थी, हेतु कुछ भी हो। लेकिन अब स्वराज्य है। स्वकीयों का राज्य है। देश को बागडोर जनता के प्रतिनिधियों के हाथों में है । अब हम अपने 'धार्मिक' रिवाजों में भी सुधार कर सकते हैं। पुराने स्मृतिग्रन्थ हमारे लिए पूज्य हैं, लेकिन उनका उपयोग हम पीनल कोड के तौर पर नहीं कर सकते । नियमों में भी एकता नहीं है। जहां जो रूढ़ि चलती है, उसी का महात्म्य होता है। रूढ़ि के पीछे-पीछे कभी-कभी शास्त्र-वचन बनाये जाते हैं। हमेशा रूढ़ि के लिए शास्त्र का प्राधार होता ही है, ऐसी बात नहीं है । रूढ़ि लोकमानस से पैदा होती है। लोकमानस बदलने पर रूढ़ि बदल सकती है, बदलनी चाहिए। शवदहन के बाद प्रत की जली हुई हड्डियां और राख नजदीक के तालाब में विसर्जन करने का रिवाज कहां तक चलावें, समाजशास्त्र समझने वाले, आरोग्यशास्त्र समझने वाले, लोकहित समझने वाले लोकनेताओं को तय करना चाहिए। मैंने अपने कई रिश्तेदारों को और स्नेहियों की अस्थियों का विसर्जन प्रयाग में या हरिद्वार में किया है । महात्माजी की अस्थियों का और चिताभस्म का विसर्जन देश के अनेक पवित्र स्थानों में किया गया, उसे मैंने पसंद किया है। लेकिन जलाशयों में विसर्जन करना कहां तक मुनासिब है, यह सवाल जब श्री देवदास गांधी ने उठाया, तब मैं भी सोच में पड़ा। ___ मुझे मालूम है कि सुदूर दक्षिण में, भारत के पश्चिम किनारे पर गोकर्ण-महाबलेश्वर नाम का एक तीर्थ स्थान है, जिसका महात्म्य पुराणों में काशी, बनारस से कम नहीं बताया

Loading...

Page Navigation
1 ... 152 153 154 155 156 157 158 159 160