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११६ :: परमसखा मृत्यु
स्वर्ग और नरक का स्वरूप क्या होगा, यह प्रश्न बाकी रहता ही है। ___ मनुष्य को जाग्रति का अनुभव है, और इस बात का भी अनुभव है कि जब नींद गहरी नहीं लगती, तब अच्छे-बुरे स्वप्न भी आते हैं। लोग मानते हैं कि इन अनुभवों में से जाग्रति का अनुभव सत्य है और स्वप्न का अनुभव मिथ्या है । लेकिन ऐसा हम क्यों मानें ? दोनों अनुभव ही हैं और अपनी-अपनी स्थिति में सत्य हैं। सिर्फ इतना ही फर्क है कि स्वप्न का अनुभव क्षणिक होता है और जाग्रति का दीर्घकालीन। और भी एक विशेषता है कि स्वप्न का अनुभव जाग्रति में बाकी नहीं रहता । जाग्रति, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरिया, इन चार अनुभवों में से महज तुरिया अवस्था का ही अनुभव सत्य है, ऐसा कहने में कोई हर्ज नहीं है। किन्तु बाकी के तीनों में से एक को सत्य माना तो दूसरे दोनों को भी सत्य मानना ही पड़ेगा। इतनी बात ध्यान में रखकर अब हम दूसरी तरफ से इस प्रश्न पर जरा सोचें।। ___हम जब रोज सोते हैं, तब जाग्रति को भूलकर शरीर को कुछ आराम मिलता है और वह ताजा बनता है । नींद गहरी पड़ने पर मन को भी विश्राम मिलता है और वह भी ताजा' बनता है।
लेकिन जाग्रतावस्था में भी और नींद में भी शरीर का कारोबार चलता ही है ; क्योंकि शरीर जिन्दा है। इसका मतलब यह हुआ कि प्राण को विश्रांति नहीं मिलती। उसे अखंड रूप से काम करना पड़ता है। लेकिन इस प्राण को भी तो कभी-न-कभी विश्रांति की आवश्यकता होगी ही। वह उसे कब मिलेगी ? जिस प्रकार जाग्रति को भूलकर हम सो जाते हैं, उसी प्रकार शरीर का विसर्जन करके प्राण को भी विश्राम लेने देना चाहिए। इसलिए तो मौत की योजना हुई है । नींद को जितनी आवश्य