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पुनर्जन्म की उपयोगिता :: १२३
हैं और शिक्षक की इच्छा के अनुसार चलने के लिए तैयार होते हैं। शिक्षक देखता है कि पीटना एक कारगर इलाज है। एक इलाज हाथ में आने के बाद वह दूसरा इलाज ढूंढ़ने या आजमाने क्यों जाय ? वर्ग में विषय पढ़ाते समय अगर बच्चों का ध्यान एकाग्र न हुआ तो वह अपना अध्यापन अधिक आकर्षक करने के बदले बच्चों को कहता है, “मैं जो कुछ कहता हूं, उस तरफ ठीक ध्यान रखना, वरना यह देखो छड़ी।" बच्चे फौरन ध्यान एकाग्र करते हैं। लेकिन विषय की तरफ नहीं, उस छड़ी को तरफ। विषय के साथ बेचारों का कुछ भी लेना-देना नहीं होता। उनकी दृष्टि से छड़ी अधिक सत्य है। इसलिए वे उसीके बारे में अधिक सोचते हैं। नतीजा यह होता है कि बच्चों की विचारशक्ति और ग्रहणशक्ति कुंठित हो जाती है। अब छड़ी को टालने का कोई इलाज ढूंढ़ना चाहिए। ग्रहण-शक्ति कुंठित हो जाने की वजह से वह मदद नहीं कर सकती। इसलिए छड़ी के जैसा ही कोई यांत्रिक इलाज ढूंढ़ना चाहिए । वह होता है रटने का । चित्त चाहे कहीं भी जाय, मुंह चल सकता है और कुछ प्रयत्न के बाद प्रश्नों का जवाब नींद में भी दिया जा सकता। मार के डर से आदमी जवाब कंठस्थ कर सकता है, यह अनुभव की बात है। लेकिन मार के डर से किसी की बुद्धि का या नीतिमत्ता का विकास हुआ है, ऐसा अनुभव नहीं
आगे चलकर विद्यार्थियों की आंखें पल भर के लिए भी अगर इधर-उधर गईं, तो शिक्षक की छड़ी बच्चे की पीठ पर पड़ी ही समझ लीजिए। छड़ी के उपयोग की जिस शिक्षक को आदत पड़ गई है, वह भलामानस शास्त्र और शिक्षण-शास्त्र क्यों देखने जायगा?
लेकिन मैं जो यहां मिसाल देना चाहता हूं, वह इससे भी