Book Title: Param Sakha Mrutyu
Author(s): Kaka Kalelkar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Prakashan

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Page 135
________________ १३४ :: परमसखा मृत्यु प्रश्न पूछा जाता है, "इस उम्र में आपका उत्साह कायम है, इसका भी रहस्य क्या है ?" चन्द लोग मानते हैं कि आश्रमजीवन का यह असर होगा। मुझे आश्रम-जीवन प्रिय है। किन्तु कठिन तपस्या के तौर पर मैंने आश्रम-जीवन को स्वीकार किया हो नहीं था। स्वादिष्ट अथवा मसालेदार भोजन का रस मैं जानता हूं, लेकिन उसके प्रति विशेष आकर्षण कभी था ही नहीं। इसलिए मिर्च नहीं खाना, मसालेदार चीजों का बहिष्कार करना, आदि नियम मेरे लिए कष्टदायक साबित नहीं हुए। मैं गांधीजी के आश्रम में रहने गया, उसके पहले भी ऐसे बहुत से नियम मैंने आजमाये थे। बड़ी चुस्ती से वर्षों तक उनका पालन किया था। उनसे मुझे लाम भी हुआ। लेकिन जब देखा, ऐसे नियमों की अब विशेष जरूरत नहीं है, तब मैंने नियम के तौर पर आग्रह नहीं रक्खा। ___ लाला लाजपतराय के निर्वासन-देश-निकाले की बात सुनी, तब मैंने छह बरस के लिए चीनी न खाने का व्रत लिया। व्रत लिया, तो उसका पालन भी अच्छी तरह से किया। जब छह वर्ष पूरे हुए, तब मैं रामकृष्ण मिशन के एक उत्सव में शरीक हुआ था। उस दिन तरह-तरह की बंगाली मिठाइयां बनाई थीं। मैंने रसपूर्वक खाईं। जब चीनी छोड़ दी, तब गुड़ खाने का नियम नहीं था। लेकिन मिठाइयां छह वर्ष तक खाई नहीं थीं। चीनी का और मिठाइयों का स्वाद ही भूल गया था। इसलिए इतने दीर्घकाल के बाद जब मिठाइयां खाईं, तब ऐसा ही लगा कि जिन्दगी में एक नये ही स्वाद का प्रथम अनुभव कर रहा हूं। मेरी रसना ने उस दिन के उत्कट स्वाद की दिलोजान से कद्र की। बड़ा आनन्द आया। लेकिन ऐसा पश्चात्ताप मन में नहीं हया कि छह वर्ष के लिए ऐगे स्वाद से अपने को वंचित रक्खा, यह गलती ही

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