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दीर्घायुता का रहस्य : १३६ क्षीण क्यों करें? बचपन जितना आनन्ददायक था, जवानी जितनी प्रोत्साहक थी, इतना ही बुढ़ापा शान्तिदायक, सन्तोषप्रद और चिन्तनानुकूल बना है। समस्त मानव-जाति अपनी जड़ता छोड़कर पुरुषार्थी बनने लगी है। जो भार आजतक हम देव और दैव के सिर पर छोड़ देते थे, वह अब हम अपने सिर पर लेने के जितने प्रौढ़, स्वावलंबी और पराक्रमी बने हैं, और समस्त मानव-जाति में पारिवारिकता का उदय होने के चिह्न दीख रहे हैं, यह सब देखने का और सोचने का प्रानन्द जब काफी मात्रा में मिल रहा है, तो बुढ़ापे के कारण मैं मायूस क्योंकर हो सकू? ___ और जिस तरह शाम को थकान के साथ मीठी और गाढ़ निद्रा का आश्वासन सुखदायक होता है, उसी तरह विविधता से भरे हुए इस जीवन का यथासमय अन्त भी होने वाला है और यथासमय मृत्यु मित्र का साक्षात्कार अवश्य ही होने वाला है, यह आश्वासन मेरे लिए सबसे श्रेष्ठ है।
एक दफा किसी ने मेरी बात सुनकर मुझसे पूछा था, "भगवान ने अगर तुम्हारी मृत्यु छीन ली और तुम्हें अजरामर चिरंजीवी बना दिया तो क्या करोगे?" मैंने कहा, "इस जीवन का अन्त होनेवाला नहीं है, ऐसा डर अगर मन में छा गया तो मैं इतना घबड़ा जाऊंगा कि उस संकट से बचने के लिए मैं खुदकुशी ही करूंगा। मैं तो मानता हूं कि खुदा की अगणित नियामतों में सबसे श्रेष्ठ है मौत । मैं नहीं मानता कि परम दयालु परमात्मा मरने के हमारे अधिकार से हमें वंचित करेगा।" ___शारीरिक पीड़ा से बचने की कोशिश जरूर करता हूं। शारीरिक और मानसिक वेदना बढ़ने से बेचैन भी होता हूं। (अब वह भी कम हो गया है); लेकिन मौत को तो मैंने एक