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दीर्घायुता का रहस्य :: १३३ यह नहीं कहता कि पानी तो डालता जाऊंगा, आग बुझे या न बुझे, इसका खयाल मैं क्यों करूं? जब पानी डालते हैं तब आग पर ही डालते हैं, कहीं तो नहीं फेंकते। इसलिए वेदान्त ने स्पष्ट किया है कि जो कर्म करना है, वह कौशल्ययुक्त करना है । फल या प्रयोजन या उद्देश्य तो मन में रहेगा ही। लेकिन फल का अगर संग रहा, फिर वह स्वार्थ का हो, परोपकार का हो, या अभिमान का हो, या परम्परा चलाने का हो, तो वह बन्धन पैदा करता ही है; क्योंकि संग से संकल्प आते हैं, जिनका दूसरा नाम है पुनर्जन्म । किसी मराठी संत ने ठीक ही कहा है कि बीज का अगर उपयोग करना है तो उसे भूनकर करो, ताकि उसमें नया अकुर फूटे नहीं। बीज खाना तो है ही, लेकिन उसके अकुर बढ़ाकर विस्तार नहीं करना है।।
परमात्मा की सृष्टि परमात्मा की इच्छा के अनुसार चलेगी या बन्द होगी, उसके साथ हमारा सम्बन्ध नहीं है। हमारा काम तो भगवान की दुनिया में आने के बाद अपनी जिम्मेदारी कौनसी है, यही देखने का है। कई संन्यासी और समाज-सेवक शादी नहीं करते, इसीलिए कि उनकी प्रजा का बोझ समाज को या किसी को उठाना न पड़े। लेकिन समाज में जो प्रजा मौजूद है, उसकी सेवा तो वे प्राणपण से करते हैं।
संकल्प और संग ही पुनर्जन्म है, जिसे क्षण-क्षण सावधान रहकर टालना चाहिए। १२-२-५७
२४ / दीर्घायुता का रहस्य
अभी मैंने ८०वां वर्ष पूरा किया नहीं है। तो भी लोग पूछने लगे हैं, "अापकी दीर्घायुता का रहस्य क्या है ?" दूसरा