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१२४ : परमसखा मृत्यु
अद्भुत है। खुद मैंने ही पूना के नूतन मराठी-विद्यालय में उसका अनुभव किया है। शुद्ध बोलना और शुद्ध लिखना व्याकरण सीखने से समझ में आ जाता है। उसी तरह कौन से प्रयोग शुद्ध हैं और कौन से अशुद्ध; यह भी व्याकरण सीखने से समझ में आता है। यह व्याकरण की 'व्याख्या' रटते समय कोई कठिनाई मालूम न हुई। लेकिन 'संज्ञा और विशेषण' के बीच का भेद समझने के बाद भी पाठ में कौन-सा शब्द 'संज्ञा' है और कौन-सा 'विशेषण', जब विद्यार्थी यह बता नहीं सकता था, तब उसपर छड़ी की बौछार पड़ती थी। पेशाब के लिए बाहर जाना हो तो दो छड़ी की 'स्टेम्प फो' अर्थात जुर्माना भरकर ही जाया जा सकता था। घर से बच्चे अगर फ़ीस न ला सके तो तीसरी तारीख से बच्चों को बढ़ते क्रम में छड़ी खानी पड़ती थी। छड़ी का इलाज इतना आसान और इतना कारगर है कि उसके हाथ में आने के बाद शिक्षक अपना दिमाग, जीभ या मेहनत क्यों काम में लाये। ____ इस तरह किसी भी वस्तु का कार्य-कारण भाव सिद्ध करने के लिए पुनर्जन्म की निर्विवाद दलील हाथ में आने के बाद मनुष्य दूसरे कारण ढूंढने ही क्यों बैठे ? इस तरह नसीब और पुनर्जन्म (इसमें पूर्वजन्म भी आ जाता है) की दलील हाथ में आने के बाद लोगों में असाधारण बौद्धिक प्रालस्य आ जाता है, जो मानव-शास्त्र, न्याय-शास्त्र, धर्म-शास्त्र आदि शास्त्रों की प्रगति को रोकता है और तीनों में विकृति पैदा करता है। नसीब और जमान्तर की दलील से निकम्मी और विकृत बनी हुई बुद्धि भौतिक पदार्थ-विज्ञान-शास्त्र में भी निकम्मी हो जाती है और अच्छी-अच्छी खोज करने के सब मौके गंवाती है। __ जमान्तर की दलील की जिन लोगों को आदत होती है, वे न्याय, नीति और सदाचार के क्षेत्रों में भी बिलकुल निकम्मे