Book Title: Param Sakha Mrutyu
Author(s): Kaka Kalelkar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 129
________________ १२८ :: परमसखा मृत्यु और किसी भी जाति ने नहीं किया होगा। हमारी मोक्ष-भावना गहरी है, एकाँगी नहीं है और उसे हम आसानी से छोड़ नहीं सकते। फिर भी हमारे जीवन-दर्शन में ही पिछले चंद वर्षों में इतना आमूलाग्र परिवर्तन हुआ है कि मोक्ष-भावना को फिर से स्पष्ट और स्थिर करना जरूरी हो गया है। ___सामान्य मनुष्य के रोजमर्रा के जीवन का आदर्श इतना स्थूल और प्राकृत होता है कि उसकी चाहे जितनी अनिवार्यता सिद्ध हो, उसके बारे में आकर्षण सिद्ध नहीं होता । खाना, पीना, रहने के लिए घर बांधना, काम करने के लिए तरह-तरह के औजार तैयार करना, बाल-बच्चों की परवरिश करना, सामाजिक जीवन विफल न हो जाय, इस वास्ते कुछ नियम तैयार करना और कुटुम्ब, जाति, राज्य-व्यवस्था और पढ़ाई का प्रबन्ध आदि मानवी संस्थाएं चलाना—यही है मनुष्य का सामान्य जीवन । इसमें संघर्ष का तत्व इतना अधिक पाया जाता है कि संघर्ष में सफलता पाने की पूर्व-तैयारी भी करनी पड़ती है और संघर्ष को टालने को कोशिशें भी करनी पड़ती हैं। स्वाभाविक यह था कि जीवन को सफलता में जो बाधाएं आती हैं उनको दूर करने के लिए जो कोशिशें हम करते हैं, उन्हीं का हम मोक्ष-साधना के रूप में स्वीकार करते। लेकिन हमारे तत्वज्ञान ने संसार को निस्सार बताया और पतन से बचने के लिए मोक्ष का रास्ता ढूंढ़ निकाला । हमारे मायावाद ने दार्शनिक शुद्धि का उच्चांक भले ही प्राप्त किया हो, जीवन के बारे मेंमायावाद ने सामान्य जनता के मन में अनादर और अनुत्साह ही पैदा किया । हम इस दुनिया में आये, यह गलती हुई है। सिर्फ भागने से मुक्ति नहीं मिलती। हमारा बन्धन जितना बाह्य है, उतना आन्तरिक भी है। इसलिए जीवन का विस्तार छोड़कर वासना पर विजय पाने की ही कोशिश करनी चाहिए।

Loading...

Page Navigation
1 ... 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160