________________
पुनर्जन्म की उपयोगिता :: १२१ से जोवन-सम्बन्धी कई चीजें जितनी मुसाफ़िक हो आती हैं, उतनी दूसरी तरह नहीं आतीं। थोड़े में कहें तो पुनर्जन्म की कल्पना हमारी मनोरचना के लिए सब तरह से अनुकूल है। इसलिए उसे स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं मालूम होती।
मेरे इस कथन से कोई यह खयाल न करे कि मैं, पुनर्जन्म नहीं है, यह सिद्ध करना चाहता हूं। पुनर्जन्म पर विश्वास रखने की आदत मुझे भी है। पुनर्जन्म मानकर ही मैं चलता हूं। पुनर्जन्म हो सकता है, इतना तो मेरा मन हमेशा स्वीकार करता आया है । पुनर्जन्म की कल्पना तर्क की विरोधी नहीं है, उलटे कई तरह से अनुकूल है । मैं इस बात को स्वीकार करता हूं। इसलिए पुनर्जन्म है या नहीं, इसमें से एक भी बात को मैं आज सिद्ध करना नहीं चाहता। पुनर्जन्म हो सकता है यह मानकर ही मैं चलना चाहता हूं। आज मुझे यहां सिर्फ इतना ही बताना है कि पुनर्जन्म को मानने से हमारे जीवन पर क्या-क्या असर होता है।
आत्मा है और वह अमर है, यह मान्यता मुख्य है। आत्मा है, और शरीर के मरने पर भी उसकी मौत नहीं होती, इतना स्वीकार किया तो पुनर्जन्म पर हम आ ही जाते हैं। प्रात्मा जब शरीर धारण करती है, तब जीवात्मा बनती है, या यों कहें कि प्रात्मा जब जीवदशा पर आती है, तब उसे देह धारण करनी पड़ती है। देहधारी के लिए मौत है ही। लेकिन यह मौत सिर्फ शरीर को ही होती है, शरीर के साथ उत्कट स्मृति की भी होती होगी। लेकिन जीवन की मौत नहीं होती। इतना स्वीकार करने के बाद, और जीवन में जो ज्ञान, अनुभव और संस्कार हम प्राप्त करते हैं, वे नष्ट नहीं होते, इस श्रद्धा के वश होने के बाद, हमें पुनर्जन्म को स्वीकार करना ही पड़ता है।