Book Title: Param Sakha Mrutyu
Author(s): Kaka Kalelkar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Prakashan

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Page 119
________________ ११८ : परमसखा मृत्यु २० / लोक-प्राप्ति पुत्रम् अनुशिष्टम् लोक्यम् पाहुः। पुत्र शब्द की व्याख्या करते हुए शास्त्रकार कहते हैं'पुन्नाम् नरकात् प्रायते इति पुत्रः'-जिस गृहस्थाश्रमी को संतान नहीं है, वह 'पुत्' नामक नरक में जा गिरता है, उसको अच्छे लोक की प्राप्ति नहीं होती। हमारे पुरखों की मान्यता थी कि संतान-उत्पत्ति के बिना मनुष्य का उद्धार नहीं है। उपनिषत्कालीन ऋषि भी कहते थे-'प्रजा-तन्तुम् या स्वच्छेत्सीः' प्रजातन्तु यानी सन्तान-परम्परा, इसे तोड़ना नहीं चाहिए। जो लोग आमरण ब्रह्मचर्य का पालन करके अध्यात्म-ज्ञान के द्वारा विश्वात्मैक्य तक पहुंचते थे , उनके लिए विवाह की आवश्यकता नहीं थी। लेकिन जो लोग इस तरह ब्रह्मप्राप्ति का सीधा रास्ता नहीं ले सकते, या नहीं चाहते थे, उनके लिए आदेश था कि केवल अमर्याद भोग-विलास का जीवन चलाने के हेतु विवाह से डरना और अकेले रहकर स्वार्थमय जीवन व्यतीत करना धर्म को मान्य नहीं है। अगर स्त्री-पुरुष को परस्पर सहवास का सुख लेना है तो अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पहचानकर सन्तान को जन्म देना और कुल-परम्परा चालू रखना मनुष्य का परम कर्तव्य है। लेकिन केवल सन्तानोत्पत्ति पशु का धर्म हुआ। श्रुति कहती है कि पुत्र को पैदा करने से ही उत्तम लोक की प्राप्ति नहीं होती। जब पिता अपने पुत्र को सब तरह का जीवनोपयोगी ज्ञान देता है, उसको संस्कार-सम्पन्न और कम-कुशल बनाता है, तभी ऐसे पूत्र के कारण पिता को अच्छे लोक प्राप्त होते हैं, पिता का उद्धार होता है। स्वर्ग-नरक, अच्छे लोक, बुरे लोक ये सब क्या हैं ?

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