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स्वर्ग क्या है ? :: ११५ के बाद लोग स्वर्ग या नरक को जाते हैं। लेकिन वहाँ की हकीकत सुनाने के लिए वहां से कोई वापस लौटा हो, यह हमने न तो सुना है, न कहीं पढ़ा है। तो फिर पुराणकारों को इतनी ब्योरेवार जानकारी कहां से मिलती है ? कुछ लोग इन बातों को कवि-कल्पना कहकर छुट्टी पाते हैं। मगर ऐसा नहीं कहा जायगा कि स्वर्ग और नरक जैसी कोई वस्तु ही नहीं है। यदि कर्म का सार्वभौम सिद्धान्त मानें तो स्वर्ग और नरक को भी मानना ही पड़ेगा। ___ प्रत्यक्ष ज्ञान ही सही ज्ञान है और आनुमानिक सब झूठा है, यह मानना गलत है। इसमें सन्देह नहीं कि इन्द्रिय-जन्य-ज्ञान में जिस प्रकार गलतियां हो सकती हैं, उसी प्रकार अनुमान में भी हो सकती हैं। मगर दोनों जड़मूल से झूठे हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता । अनुमान का आधार प्रत्यक्ष पर है और अनुमान का शास्त्र इतना विकसित हुआ है कि प्रत्यक्ष ज्ञान में यदि गलती न हुई हो तो उसके आधार से निकाले हुए अनुमान में गलती हरगिज नहीं होनी चाहिए। यह शास्त्र इतना परिपक्व बन चुका
हम अपने जीवन की परिपाटी का नियंत्रण जिस प्रकार करते हैं, उसी प्रकार हमारे चारों ओर फैले हुए इस विश्व का भी नियंत्रण करने वाली कोई शक्ति होनी ही चाहिए, ऐसा पिंडब्रह्मांड न्याय से सिद्ध होता है; क्योंकि पिंड और ब्रह्मांड में तत्त्वतः कोई भेद नहीं है,द्वैत नहीं है।
सृष्टि के व्यवहार की ओर जब हम देखते हैं, तब कर्म का सार्वभौमत्व मालूम होता है। कर्म और उसका फल, इनका सम्बन्ध सनातन है, अटल है । इतना अनुभव होने के बाद और इस बात का विश्वास होने के बाद कि कर्म का फल मिलना ही चाहिए, स्वर्ग और नरक को मानना ही पड़ता है। लेकिन इस