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मरण की तैयारी :: ११३ णोत्तर जीवन परिपुष्ट तथा लोगों की उन्नति करने वाला बनेगा। ___ तब मरणोत्तर जीवन अर्थात् सांपराय क्या है ?
१. मनुष्य मृत्यु के बाद भी अपने विचारों, अपनी भावनाओं, अपने संकल्पों तथा अपने द्वारा प्रेरित पुरुषार्थों के योग से समाज में जीवित रहता है। मृत्यु के बाद का यह जीवन उतना ही महत्वपूर्ण होता है, जितना कि मृत्यु से पहले का जीवन । वह परिपुष्ट भी होता है और क्षीण भी होता है । वह जीवन समाज की उन्नति करने वाला हो तो वही मनुष्य का स्वर्ग है और यदि वह जीवन समाज को नीचे गिराने वाला हो तो वही मनुष्य का नरक होता है। पंच महाभूतों से बने शरीर में वास करने को अपेक्षा समाजरूपी शरीर में वास करके मनुष्य अत्यन्त दीर्घ जीवन प्राप्त कर सकता है और ऐसे जीवन की सफलता का अधिकारी बनता है। इस मरणोत्तर जीवन का व्यक्तिरूपी दर्पण में, अहंकार रूपी दर्पण में, जो प्रतिबिम्ब पड़ता है, वही कीति है, वही यश है।
२. मनुष्य को मृत्यु के बाद के समाजगत जोवन का खयाल नहीं होता, इसीलिए कीर्ति, यश, पुण्य, स्वर्ग, नरक आदि कल्पनाएं रची जाकर मनुष्य के सामने प्रस्तुत की गई हैं। परलोक कोई पृथ्वी से बाहर है, ऐसी बात नहीं। परलोक का अर्थ है मृत्यु के बाद की स्थिति । इसी स्थिति को उपनिषदों में 'सांपराय' नाम दिया गया है। बालकों जैसी बुद्धि रखने वाले मूढ़ को इस सांपराय की पहचान नहीं होती। 'न सांपरायः प्रतिभाति बालम् ।' मूढ़ लोग यह मानते हैं कि शरीर, उसके सुख-दुःख, उन सुख-दुःखों का साधन बनने वाली स्थावर और जंगम संपत्ति, इन सुख-दु:खों का भोक्ता अहंकार (अस्मिता) और शरीर टिके उतने समय में मर्यादित अायु-इन सबमें ही उनका सारा