Book Title: Param Sakha Mrutyu
Author(s): Kaka Kalelkar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Prakashan

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Page 115
________________ ११४ :: परमसखा मृत्यु जीवन समा जाता है। परन्तु इन सबको मिलाकर हमारा जो व्यक्तित्व बनता है, वह हमारे जीवन का केवल एक अल्प अंश है। वास्तव में काल, देश (व्याप्ति) और आधार का विचार करने पर मालूम होगा कि हमारा जीवन अत्यन्त विशाल है। यह सत्य जिसने समझ लिया है और जिसके गले उतर गया है, वह निश्चित रूप से निष्पाप और अमर होगा। ___३. ऐसा मनुष्य यदि संत तुकाराम के शब्द में कहे कि 'मरण माझे मरोनि गेलें, झालों मी अमर'-मेरी मृत्यु मर गई और मैं अमर हो गया है, तो इसका अर्थ समझना कठिन नहीं है। जीवन की दृष्टि से शारीरिक मृत्यु बिलकुल तुच्छ है, इतना तो आसानी से हमारी समझ में आ जाना चाहिए। १९३३ १६/ स्वर्ग क्या है ? स्वर्ग और नरक के बारे में अबतक इतना कुछ लिखा गया है कि मालूम होता है, यह लिखने वाले लोग दोनों जगह पर काफी रह चुके हैं। स्वर्ग नरक के इतने विस्तृत वर्णन पढ़ने के बाद इस प्रकार मालूम होना आश्चर्य की बात नहीं है। इस धरती का भूगोल और उस पर विचरने वाले मानवों का इतिहास लिखते समय क्या-क्या तकलीफें उठानी पड़ती हैं । भूगोलवेत्ता लोग जान खतरे में डालकर खोज करते हैं । इतिहासकार प्राचीन अवशेषों को चूस-चूस कर इतिहास का अन्वेषण करते हैं। फिर भी, उनपर पूरा विश्वास नहीं बैठता। लेकिन इन पुराणकारों को स्वर्ग और नरक के इतिहास और भूगोल का कोना-कोना मालूम है। क्या सचमुच ऐसे 'लोक' हैं ? हम सुनते या पढ़ते हैं कि मरने

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