________________
२४ :: परमसखा मृत्यु की दीवार के नीचे गिर पड़ा। लेकिन उसके प्राण नहीं निकले। असह्य पीड़ा से व्याकुल होकर वह इसका इन्तजार कर रहा था कि किसी दयालू राहगीर की मदद से वह मरण का साक्षात्कार कर ले । जब ऐसा एक पथिक मित्र मिल गया, तब उसने स्वाभिमान पूर्वक मरण-दान की याचना की। ___ कायर होकर जीवन-दान मांगने वाले बहुत होते हैं, लेकिन मस्त होकर मरण-दान की याचना करने वाले भी कभी-कभी निकल आते हैं। ___अगर दुनिया में मरण न होता तो नये-नये प्राणी जन्म भी न लेते। जन्म और मरण एक ही सिक्के के दो बाजू हैं। मरण है, इसीलिए दुनिया का जमा-खर्च ठीक रहता है । मरण से कोई नफरत न करे । वह सबका परम मित्र है, वह सर्व-समर्थ है, उसने कभी किसी को निराश नहीं किया है।
आश्चर्य की बात यह है कि हरएक प्राणी मरणशील होते हुए भी मरण को कोई ठीक रूप से पहचानता नहीं । सामान्य लोग मरण से इतने डरते रहते हैं कि असल में मरण क्या चीज है, यह कोई सोचता ही नहीं । मृत्यु के समय शरीर में असह्य वेदना होती है, इसलिए लोग मरण से नफरत करते हैं। रोग होने पर उसे दूर करने के लिए डाक्टर हमारे पास आता है, उस डाक्टर को ही दुष्ट समझना कितना न्याय्य है, उतना ही, जब आदमी को रोग, प्रहार अथवा निराशा या ऐसा ही कोई आघात असह्य होता हो, जब उसकी व्यथा को दूर करने के लिए जो मरण आता है, उसे दोषी समझना न्याय्य है । जब कोई आदमी चिन्ता, अपमान या किसी रोग के कारण अपनी शैया पर करीब-करीब रात भर तड़पता रहता है और अन्त में दयालु निद्रा आकर उसे शांत करती है, तब कोई यह नहीं कहता कि निद्रा ही उसकी बैरिन है। एक अंग्रेज़ कवि ने अपने