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अनायास मरण :: ५६ ने अपनी नस कटवाई । लेकिन वृद्ध शरीर से खून निकला ही नहीं। फिर वह गरम पानी में जा बैठा। तब खून बहने लगा और यथासमय सेनेका का प्राणान्त हो गया। सेनेका बड़ा तत्वज्ञानी था। उसके ज्ञानवचन आज भी सारी दुनिया पढ़ती है। ___आज जब चोरफाड़ का नश्तर लगाने की विद्या ने असाधारण प्रगति की है, आदमी को बेहोश करने की अथवा शरीर का कोई खास हिस्सा बधिर करने की तरकीबें भी मनुष्य के हाथ में आई हैं। इसलिए स्वेच्छा-मरण का और मरण-दान का अधिकार और कर्तव्य अगर मान लिया तो अनायास मरण का रास्ता अब सुलभ है।
लेकिन चन्द लोग कहते हैं कि मृत्यु के क्षण चित्त' जाग्रत रहे और परलोक के लिए आवश्यक तैयारी करे, यह जरूरी है। स्वेच्छा-मरण में यह भी हो सकता है । मनुष्य अपनी पूरी तैयारी कर ले, वसीयतनामा करना हो तो वह करे; जिन्हें खत लिखने हों, लिखें, जिनसे विदाई लेनी हो, ले, प्रार्थना ध्यान करना हो वह भी करें, और फिर सुन्दर ढंग से मृत्यु को आलिंगन दें। मृत्यु भी तो एक सुन्दर चीज है। उसकी अपनी लज्जत होती है। धूप या कपूर जिस तरह जलकर समाप्त होते समय सर्वत्र सुगन्ध फैलाता है, उस तरह सज्जनों की मृत्यु भी प्रसन्न, मंगल और सुवासित होनी चाहिए। संगीत की लय जैसी मधुर होती है और पीछे आनन्ददायी स्मृति छोड़ती है, वैसे ही जीवन की लय को भी हम संगीतमय, आलादमय और परम शान्ति-युक्त बना सकते हैं । मानवीय संस्कृति का यह आवश्यक अंग है । जीवन-लंपट संस्कृति अधूरी संस्कृति है। मरण तो जीवन की कृतार्थता ही है, इतना समझने वाली संस्कृति अब शुरू होनी चाहिए। अक्तूबर, १९५६