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६८ :: परमसखा मृत्यु फंसे हुए लोग बुढ़ापा पाने पर भी मृत्यु का चिन्तन नहीं करते। इसलिए धर्मराज ने कहा कि अनादि काल से सब-के-सब प्राणी मरते हुए पाये जाते हैं । फिर भी हर एक प्राणी अपने को अमर ही मानता है । मृत्यु का भान मन में ही नहीं आने देता। इससे बढ़कर आश्चर्य कौनसा होगा? ____ मृत्यु की तैयारी की सूचना देते हुए कवि ने दो बातें बताई हैं। धन कमाते समय या ज्ञान कमाते समय मनुष्य को मृत्यु का चिन्तन नहीं करना चाहिए। हम अजर-अमर हैं, ऐसा सोचकर समाज के लिए धर्म की, और ज्ञान की पूंजी बढ़ाते जाना चाहिए। लेकिन कर्तव्याचरण में शिथिलता न हो, धर्म-पालन में गफलत न हो, इसलिए हमेशा याद रखना चाहिए कि मृत्यु किसी भी समय आ सकती है। ___ यह तो हुई व्यवहार की शुद्ध दृष्टि । लेकिन जिस तरह जमीन पर चलते, पानी में तैरते या आकाश में उड़ते समय हम पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को नहीं भूलते, उसी तरह हमेशा और खास करके बुढ़ापे में, मृत्यु का स्मरण जाग्रत रखना चाहिए। मरण का स्मरण ही है व्यापक जीवन की सुन्दर साधना। इससे मानसिक आरोग्य मजबूत बनता है, चित्त को शांति रहती है, हृदय प्रफुल्लित रहता है और जीवन अपने लिए और समाज के लिए आशीर्वाद रूप बनता है। दिसम्बर, १९५६
११ / मृत्यु का रहस्य
जिस तरह दिवस और रात्रि मिलकर २४ घंटे का दिन बनता है, शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष मिलकर महीना बनता है, उसी तरह जीवन और मरण मिलकर जिन्दगी यानी व्यापक